भारत सरकार ने कोरोना वैक्सीन को कुछ शर्तों के साथ खुले बाजार में बेचने की इजाजत दे दी है। माना जा रहा है कि इससे वैक्सीनेशन की रफ्तार में तेजी आएगी। वैक्सीन के एक डोज की कीमत भी ढाई सौ रुपए ही रखी गई है। सोचें, सरकार सीरम इंस्टीच्यूट में बनी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का एक डोज 290 रुपए में खरीद रही है और उसकी एक डोज निजी अस्पताल लोगों को ढाई सौ रुपए में लगाएंगे। इसमें उन अस्पतालों का सर्विस चार्ज भी शामिल होगा। अभी सरकार ने यह नहीं बताया है कि इसका क्या फॉर्मूला है। क्या सरकार अपने पैसे से वैक्सीन खरीद कर निजी अस्पतालों को देगी और निजी अस्पताल उसे लगा कर कमाई करेंग या वैक्सीन अस्पताल वाले खरीदेंगे और सरकार उनका सर्विस चार्ज चुकाएगी?
इस बीच खबर है कि सीरम इंस्टीच्यूट ने अपनी वैक्सीन कोवीशील्ड की मंजूरी मिलने से पहले ही करोड़ों डोज बना कर रख ली थी। बताया जा रहा है कि इसमें से काफी मात्रा में वैक्सीन अप्रैल के अंत में एक्सपायर होने वाली है। चूंकि देश में वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी धीमी रही इसलिए वैक्सीन की करोड़ों डोज पड़ी रह गई है। अगर इसे अप्रैल के अंत तक नहीं लगाया गया तो कंपनी को बड़ा नुकसान होगा। कहीं इस वजह से तो निजी अस्पतालों को वैक्सीनेशन में नहीं शामिल किया जा रहा है? अगर सचमुच ऐसा है तो जल्दी ही वैक्सीनेशन पर लगाई गई शर्तें भी हटाई जा सकती हैं।
क्या वैक्सीन एक्सपायर होने की चिंता?
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