ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर बीएस येदियुरप्पा की शरण में जाना होगा। पार्टी को अंदाजा हो गया है कि उनके बिना चुनाव जीतना मुश्किल है। अगले साल लोकसभा के चुनाव हैं और उससे पहले पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है क्योंकि राज्य की 28 में से 26 सीटें भाजपा के पास हैं। कर्नाटक के चुनाव नतीजे आने के बाद उसके विश्लेषण से येदियुरप्पा का महत्व प्रमाणित हुआ है। वे 2013 में भाजपा छोड़ कर चले गए थे और कर्नाटक जनता पार्टी बना कर अलग चुनाव लड़े थे। उस समय उनको 10 फीसदी वोट मिले थे और उनकी पार्टी सिर्फ छह सीटें जीत पाई थी। लेकिन उन्होंने सीधे सीधे 28 सीटों पर भाजपा को चुनाव हरवा दिया था।
इस बार वे पार्टी में थे लेकिन उनको मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था और वे बहुत सक्रिय प्रचार नहीं कर रहे थे, तब भी बिल्कुल वैसी ही हुआ है, जैसा 2013 में हुआ था। इस बार भी लिंगायत असर वाले यानी येदियुरप्पा के असर वाले क्षेत्रों में 25 सीटों पर भाजपा हारी है। लिंगायत असर वाली 113 सीटों में से भाजपा को सिर्फ 31 सीटें मिली हैं, जबकि पिछली बार उसने 56 सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी ओर इस क्षेत्र में कांग्रेस को 22 सीटों का फायदा हुआ है। उसकी सीटों की संख्या 56 से बढ़ कर 78 हो गई है।
येदियुरप्पा का महत्व और भी तरह से प्रमाणित हुआ है। राज्य की चिकमगलूर सीट पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि हार गए हैं। येदियुरप्पा उनसे नाराज थे और उनके प्रचार में नहीं गए थे। माना जा रहा है कि उन्होंने ही रवि को हरवाया। ध्यान रहे टिकट बंटवारे के समय येदियुरप्पा और उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को लेकर सीटी रवि ने एक बेहद तीखे बयान में कहा था कि भाजपा की टिकट किसी के किचेन में तय नहीं होगी और टिकट इस आधार पर नहीं मिलेगा कि कोई किसी का बेटा है। इसके बाद से ही चार बार के विधायक रवि की हार तय मानी जा रही थी। रवि को कांग्रेस के थमैया ने हराया, जो पहले येदियुरप्पा के करीबी नेता थे।
इसी तरह हावेरी की एक सीट पर येदियुरप्पा के करीबी यूबी बानकर ने राज्य के कृषि मंत्री बीसी पाटिल को हराया। राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री और लिंगायत समुदाय के नेता वी सोमन्ना चामराजनगर सीट पर हार गए और हारने के बाद येदियुरप्पा पर हमला करते हुए कहा कि उनसे पूछा जाना चाहिए कि लिंगायत वोट क्यों बंटा। कुल मिला कर येदियुरप्पा के करीबी 25 ऐसे नेता हैं, जो इस बार दूसरी पार्टियों से चुनाव जीते हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए भाजपा विधायक मदल विरूपक्षपा के बेटे को भाजपा ने टिकट नहीं दिया था। वे चन्नागिरी सीट पर निर्दलीय लड़े थे और 16 हजार वोट से हारे। लेकिन उस सीट पर भाजपा तीसरे स्थान पर रही। बताया जा रहा है कि येदियुरप्पा ने उनकी मदद की। बहरहाल, येदियुरप्पा के करीबी 25 विधायक इस बार दूसरी पार्टियों से चुनाव जीते हैं और कई करीबी नेता दूसरी पार्टियों में जाकर मामूली अंतर से हारे हैं, जिनमें एक एमपी कुमारस्वामी भी हैं, जो जेडीएस से लड़े थे और 772 वोट से चुनाव हार गए।