पता नहीं क्यों आस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों को लगा की कोटला पिच पर सिर्फ आड़े शॉट मार कर ही रन बनाए जा सकते हैं। ऐसा लगा कि पूरी आस्ट्रेलिया टीम सिर्फ झाड़ू मारने को ही कोटला पर बल्लेबाजी करना मान रही थी।
कई बार हार की तरह ही जीत भी हैरान करती है। कोटला पिच पर जिस उम्मीद के साथ आस्ट्रेलिया ने दूसरे दिन का खेल खत्म किया था, उन्हें और भारत को भी यह उम्मीद नहीं थी कि तीसरे दिन भोजन से पहले ही वे पतझड़ के पत्तों की तरह ढह जाएंगे। एक तरह से आस्ट्रेलिया का आत्मसमर्पण था। अपन और सभी क्रिकेट प्रेमी हैरानी में प्रसन्नचित हैं।
तीसरे दिन दिल्ली के कोटला पर आस्ट्रेलिया का ढहना, ठीक नागपुर के जामथा जैसा ही रहा। उनके बल्लेबाज कैसा भी आस्ट्रेलियाई जुझारू दमखम नहीं दिखा पाए। पता नहीं क्यों आस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों को लगा की कोटला पिच पर सिर्फ आड़े शॉट मार कर ही रन बनाए जा सकते हैं। ऐसा लगा कि पूरी आस्ट्रेलिया टीम सिर्फ झाड़ू मारने को ही कोटला पर बल्लेबाजी करना मान रही थी। जहां सूझबूझ से सीधा या कभी आड़ा खेलना जरूरी था वहां सिर्फ आड़े बल्ले से ही खेलने में आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज लगे। नतीजा सभी के सामने है।
भारतीय टीम तो शत-प्रतिशत विजेता की तरह खेली। दूसरे दिन की दोपहर को अगर अक्षर और अश्विन जैसा खेले, नहीं खेलते, तो भारत का हारना भी हो सकता था। उनकी शतकीय साझेदारी ने ही भारत को उबारा, और आस्ट्रेलिया के सामने खड़ा रहने का मौका दिया। वर्ना अपने बल्लेबाज भी कोटला पर आस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों की तरह ही खेल रहे थे। स्पिन होती, नीचे रहती गेंद वाले पिच पर आड़े से ज्यादा सीधे बल्ले से खेलना ही कारगर रहता है। अक्षर का ऐसी पिच पर खेलने का अनुभव, और अश्विन-जाडेजा की गेंदबाजी पूरी आस्ट्रेलिया टीम पर भारी पड़ा।
नागपुर के बाद दिल्ली में हारना आस्ट्रेलियाई क्रिकेट के लिए शर्मनाक है। घरेलू टीम को मदद मिले इसलिए ही देशों में अपनी ताकत और योग्यता के अनुसार पिच बनाने का रिवाज़ है और चला आ रहा है। पिच पर रोना आस्ट्रेलिया के लिए बचकाना ही रहेगा। बस सोचना यह होगा कि अगर सभी टेस्ट तीन-तीन दिन ने निपटने लगेंगे तो खेल का बाज़ार इसको कैसे लेगा? आज बाज़ार का नुकसान भी खेल का नुकसान है। लेकिन अपन तो टेस्ट क्रिकेट में अपनी एक और एतिहासिक जीत का जश्न जरूर मनाएंगे। बधाई और टेस्ट क्रिकेट का अगला उत्सव अब इंदौर में मनेगा।