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National Sports Day: क्यों मनाते हैं और किसे मिलते हैं खेल पुरस्कार?

National Sports Day

National Sports Day: भारत में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है, जो हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पहली बार इसे 2012 में उत्सव के रूप में मान्यता दी गई थी। इस दिन का उद्देश्य विभिन्न राज्यों में शारीरिक गतिविधियों और खेलों के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाना है, जिसके लिए कई खेल प्रतियोगिताएं और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।

यह दिन विभिन्न खेल योजनाओं की शुरुआत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में भी उपयोग किया जाता है। 2018 में इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेलो इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की थी।

इस अवसर पर देश के प्रतिभाशाली एथलीट्स को सम्मानित किया जाता है, जिनमें राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार जैसे प्रमुख खेल पुरस्कार शामिल हैं। इन पुरस्कारों का वितरण राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में किया जाता है।

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इस कारण मनाते है राष्ट्रीय खेल दिवस

आज गुरुवार (29 अगस्त 2024) को ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद की 119वीं जयंती है। 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद की जयंती के अवसर पर हर साल देशभर में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। इस देश ने सचिन तेंदुलकर, धनराज पिल्लै, और बलबीर सिंह सीनियर जैसे कई खेल सुपरस्टार देखे हैं, लेकिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का भारतीय खेलों को शीर्ष पर पहुंचाने में एक विशेष योगदान है।

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले भारतीय हॉकी टीम का दुनियाभर में दबदबा हुआ करता था, और इसमें ध्यानचंद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने 1928, 1932, और 1936 के ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक स्वर्ण पदक की हैट्रिक पूरी की।

ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आठ स्वर्ण पदक समेत कुल 13 पदक जीते हैं, लेकिन 1936 के बर्लिन ओलंपिक का स्वर्ण पदक कुछ खास है। 1936 में 15 अगस्त के दिन, भारत ने तानाशाह हिटलर के सामने मेजर ध्यानचंद की अगुआई में जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता था। ध्यानचंद के खेल से हिटलर इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें जर्मन नागरिकता देने का प्रस्ताव तक किया, लेकिन ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया। 1936 का ओलंपिक उनका आखिरी ओलंपिक था। उन पर कई आरोप भी लगे, लेकिन वे कभी सिद्ध नहीं हो पाए।

जब ठुकराया था हिटलर का प्रस्ताव

कहानी 1936 के बर्लिन ओलंपिक की है, जब भारतीय हॉकी टीम ने जर्मनी के खिलाफ खेलते हुए 8-1 से शानदार जीत हासिल की थी। इस मुकाबले में मेजर ध्यानचंद के खेल का जादू ऐसा चला कि जर्मनी का तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी उनका मुरीद हो गया। मैच के बाद, हिटलर ने मेजर ध्यानचंद से मुलाकात की और उन्हें अपनी सेना में एक बड़े पद का प्रस्ताव दिया।

हालांकि, ध्यानचंद ने विनम्रता के साथ हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस कदम से उन्होंने पूरी दुनिया में तारीफें बटोरीं। हिटलर ने ध्यानचंद की न सुनते ही चुपचाप वहां से निकल जाने का फैसला किया। यह मुलाकात भले ही कुछ ही मिनटों की थी, लेकिन इसने यह साफ कर दिया कि ध्यानचंद के लिए उनके देश से बड़ा कोई ओहदा नहीं था।

1936 में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक तो जीता, लेकिन जब राष्ट्रीय ध्वज लहराता नहीं देखा, तो ध्यानचंद का मन अंदर से टूट गया। हिटलर ने पदक विजेताओं के लिए एक पार्टी रखी थी, लेकिन ध्यानचंद उसमें नहीं गए। वह खेल गांव में बैठे रहे, उनकी आंखों में आंसू थे।

जब टीम के एक साथी ने उनसे पूछा कि टीम की जीत के बावजूद वह रो क्यों रहे हैं, तो ध्यानचंद का जवाब था कि अगर यूनियन जैक (ब्रिटिश इंडिया का झंडा) की जगह यहां तिरंगा होता, तो उन्हें सच्ची खुशी होती। मेजर ध्यानचंद की इन्हीं महान उपलब्धियों और उनके देशप्रेम के कारण उनके जन्मदिन, 29 अगस्त, को देश में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हॉकी स्टिक से गेंद चिपकने के किस्से थे मशहूर

मेजर ध्यानचंद के खेल के बारे में एक मशहूर बात यह थी कि जब वह हॉकी खेलते थे, तो ऐसा लगता था मानो गेंद उनकी स्टिक से चिपक जाती थी। उनकी इस अद्भुत कला को लेकर कई रोचक किस्से प्रचलित हैं। हॉलैंड (नीदरलैंड) में एक मैच के दौरान, विपक्षी टीम को शक हुआ कि उनकी स्टिक में कोई गड़बड़ी है। इसलिए, उनकी हॉकी स्टिक को तोड़कर चेक किया गया, ताकि इस आशंका को दूर किया जा सके। यह घटना दर्शाती है कि विरोधी टीमें उनसे किस हद तक डरती थीं।

इतना ही नहीं, जापान में भी एक मैच के दौरान यह बात कही गई थी कि उनकी स्टिक में गोंद लगा हुआ है, जिससे गेंद चिपक जाती है। हालांकि, ऐसा कोई भी दावा कभी साबित नहीं हुआ। ध्यानचंद सिर्फ अपने खेल में ही नहीं, बल्कि अपने उसूलों और नियमों के पालन में भी सख्त थे।

एक बार, एक मैच में लगातार कई प्रयासों के बाद भी ध्यानचंद गोल करने में नाकाम रहे। यह उनके लिए असामान्य था क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। वह बार-बार कोशिश करते, लेकिन गेंद गोल पोस्ट के अंदर नहीं जा पाती।

ध्यानचंद के खेल पर किसी को भी शक नहीं था, लेकिन उन्होंने गोल पोस्ट की लंबाई को लेकर रेफरी से शिकायत की, जिससे सभी हैरान रह गए। हॉकी के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। जब गोल पोस्ट को नापा गया, तो पाया गया कि वह वास्तव में नियमों के मुताबिक छोटा था।

मेजर ध्यानचंद की यह महानता थी कि वह सिर्फ एक महान खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि खेल के प्रति उनके दृष्टिकोण और सच्चाई के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें एक किंवदंती बना दिया।

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