काबुल
अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम होने को लेकर जो अंदेशे थे, उनमें से कुछ अब सच साबित होने लगे हैँ। लंबे समय बाद अल-कायदा ने वहां अपनी मौजूदगी जताई है।
अपगानिस्तान में अलग अलग आतंकवादी गुटों के बीच सहमति नहीं बन पाने की वजह से सरकार का गठन नहीं हो पा रहा है।
तालिबान के अस्तित्व में आने के बाद से लगातार महिलाओं पर शोषण के आरोप लगते जा रहे हैं. एक ओर जहां तालिबान के प्रवक्ता दुनिया के सामने ये….
यह लाख टके का सवाल है कि भारत ने तालिबान के साथ जो वार्ता शुरू की है वह किसी मुकाम तक पहुंचेगी या दो-चार दिन की सनसनी बन कर रह जाएगी?
तालिबान से एक दौर की वार्ता कर चुकी भारत सरकार चाहती है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाए।
अमेरिका ने कहा है कि उसे या दुनिया के किसी और देश को तालिबान को मान्यता देने की कोई जल्दबाजी नहीं है, क्योंकि यह कदम पूरी तरह इस बात पर निर्भर करेगा
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी होने के एक दिन बाद ही आतंकवादी संगठन अलकायदा सक्रिय हो गया है और उसने कश्मीर की आजादी की राग भी छेड़ दिया है।
मुझे खुशी है कि क़तर में नियुक्त हमारे राजदूत दीपक मित्तल और तालिबानी नेता शेर मुहम्मद स्थानकजई के बीच दोहा में संवाद स्थापित हो गया है।
काबुल हवाईअड्डे पर 30 अगस्त की आधी रात को जब हथियारों से लैस पूरे मिलिट्री गियर में अमेरिकी सेना के मेजर जनरल क्रिस डोनह्यू सी-17 ट्रांसपोर्ट विमान में सवार हुए तो वह तस्वीर इतिहास में दर्ज हो गई।
अफगानिस्तान से अमेरिका के आखिरी सैनिक के विदा होने के साथ ही 30 अगस्त की आधी रात को तालिबान ने अफगानिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया।
भारत सरकार की दुविधा यह है कि उसके अपने घरेलू एजेंडे के तहत तालिबान से संपर्क बनाना माफिक नहीं लगता। लेकिन तालिबान ही अब अफगानिस्तान का शासक है।
अब लगभग 20 साल बाद आज अमेरिका अफगानिस्तान से वापस लौट रहा है। विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र आज किस मुद्रा में है?
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी संगठन और आतंकवाद की फैक्टरी तालिबान को दुनिया मान्यता देगी।
अमेरिका के सैनिक 20 साल बाद पूरी तरह से वापस लौट गए है। अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को बुलाने की तारीख 31 अगस्त तय की थी लेकिन, समय सीमा से पहले ही अफगान में अमेरिकी सैनिक वापस लौट गए..
सन् 2021 की 31 अगस्त की तारीख दक्षिण एशिया और खासकर भारत के लिए निर्णायक मोड़ है। अमेरिका और नाटो देशों की सेनाओं का अफगानिस्तान से लौटना पश्चिमी सभ्यता का वह फैसला हैI