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Corona Update: एक्टिव केस 20 लाख से नीचे, मौतों की संख्या में भी आने लगी कमी

इसके साथ ही एक्टिव केसेज की संख्या में भी बड़ी तेजी से कमी आई है। सोमवार को एक्टिव केसेज की संख्या 20 लाख से नीचे आ गई।

Corona Update: रिकार्ड रफ्तार से घटे केस, लेकिन मरने वालों की संख्या कम नहीं

कोरोना वायरस की दूसरी लहर जिस तेजी से ऊंचाई पर गई थी उसी तेजी से इसमें कमी आ रही है। पहली लहर के मुकाबले में दूसरी लहर में केसेज ज्यादा तेजी से कम हो रहे हैं।

Corona Update: एक्टिव केसेज 30 फीसदी घटे, 10 दिन में नौ लाख से ज्यादा कमी

कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से कम हो रहा है। पिछले 10 दिन में देश में एक्टिव केसेज की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा कम हो गई है।

कोरोनाः अब मुकाबला जमकर

एक-दो प्रांतों को छोड़कर भारत के लगभग हर प्रांत से खबर आ रही है कि कोरोना का प्रकोप वहाँ घट रहा है। अब देश के सैकड़ों अस्पतालों और तात्कालिक चिकित्सा-केंद्र में पलंग खाली पड़े हुए हैं। लगभग हर अस्पताल में आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में है। विदेशों से आए आक्सीजन-कंसन्ट्रेटरों के डिब्बे बंद पड़े हैं। दवाइयों और इंजेक्शनों की कालाबाजारी की खबरें भी अब कम हो गई हैं। लेकिन कोरोना के टीके कम पड़ रहे हैं। कई राज्यों ने 18 साल से बड़े लोगों को टीका लगाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है। देश में लगभग 20 करोड़ लोगों को पहला टीका लग चुका है लेकिन ये कौन लोग हैं ? इनमें ज्यादातर शहरी, सुशिक्षित, संपन्न और मध्यम वर्ग के लोग हैं। अभी भी ग्रामीण, गरीब, पिछड़े, अशिक्षित लोग टीके के इंतजार में हैं। भारत में 3 लाख से ज्यादा लोग अपने प्राण गवां चुके हैं। यह तो सरकारी आंकड़ा है। इस आंकड़े के बाहर भी बहुत-से लोग कूच कर चुके हैं। अब तक 3 लाख से ज्यादा लोग चले गए। पिछले 12 दिन में 50 हजार लोग महाप्रयाण कर गए। इतने लोग तो आजाद भारत में किसी महामारी से पहले कभी नहीं मरे। किसी युद्ध में भी नहीं मरे। यह… Continue reading कोरोनाः अब मुकाबला जमकर

कमान हाथ में लेने की नाकाम कोशिश!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर कोरोना महामारी से मुकाबले की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहे हैं। वे मुख्यमंत्रियों से बात कर रहे हैं। अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं। यहां तक कि जिलों के कलेक्टरों से सीधी बात कर रहे हैं। इन सबका मकसद यह दिखाना है कि कोरोना से लड़ाई असल में प्रधानमंत्री ही लड़ रहे हैं और उन्होंने एक बार फिर अपनी दिव्य शक्तियों से कोरोना पर देशवासियों को विजय दिला दी। परंतु मुश्किल यह है कि इस बार उनकी कोशिशें कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोरोना कंट्रोल करने की कमान उन्होंने खुद अपने हाथ से निकल जाने दी थी और एक बार जब कमान हाथ से निकल गई और उनके खुद के बनवाए यह धारणा बन गई कि स्वास्थ्य राज्यों का मामला है और राज्य सरकारों को ही इस वायरस से निपटना है तो अब लाख चाह कर भी वे इस धारणा को नहीं बदल सकते हैं और न कोरोना के कम होते केसेज का श्रेय ले सकते हैं। यह भी पढ़ें: केरल में सीपीएम का जनादेश के साथ धोखा ! याद करें कोरोना वायरस की पहली लहर में प्रधानमंत्री मोदी ने कैसे पूरा कंट्रोल अपने हाथ… Continue reading कमान हाथ में लेने की नाकाम कोशिश!

Corona update: सात राज्यों में बढ़ा संक्रमण, संक्रमण दर 25 फीसदी से ऊपर

देश के ज्यादातर राज्यों में corona cases कम होने लगे हैं और एक्टिव केसेज की संख्या में रिकार्ड रफ्तार से कमी हो रही है।

कोरोनाः आशा की किरणें

भारत जबसे आजाद हुआ है, कोरोना-जैसा संकट उस पर कभी नहीं आया। इस संकट ने राजा-रंक, करोड़पति-कौड़ीपति, औरत-मर्द, शहरी-ग्रामीण, डाक्टर-मरीज़– किसी को नहीं छोड़ा। सबको यह निगल गया। श्मशानों और कब्रिस्तानों में लाशों के इतने ढेर देश में पहले किसी ने नहीं देखे। भारत में यों तो बीमारियों, दुर्घटनाओं और वृद्धावस्था के कारण मरने वालों की संख्या 25 हजार रोज़ की है। उसमें यदि चार-पांच हजार ज्यादा जुड़ जाएं तो यह दुखद तो है लेकिन कोई भूकंप-जैसे बात नहीं है लेकिन सरकारी आंकड़ों पर हर प्रांत में सवाल उठ रहे हैं। ये भी पढ़ें: मलेरकोटलाः एक बेमिसाल मिसाल देश में ऐसे लोग अब मिलना मुश्किल है, जिनका कोई न कोई रिश्तेदार या मित्र कोरोना का शिकार न हुआ हो। यों तो भारत के दो प्रतिशत लोगों को यह बीमारी हुई है लेकिन सौ प्रतिशत लोग इससे डर गए हैं। इस डर ने भी कोरोना को बढ़ा दिया है। मृतकों की संख्या अब भी रोजाना 4 हजार के आस-पास है लेकिन मरीजों की संख्या तेजी से घट रही है। संक्रमण घट रहा है और संक्रमित बड़ी संख्या में ठीक हो रहे हैं। ये भी पढ़ें: पोस्टरबाजों की हास्यास्पद गिरफ्तारी यदि यही रफ्तार अगले एक-दो हफ्ते चलती रही तो आशा है कि… Continue reading कोरोनाः आशा की किरणें

Corona संक्रमण की दर घट रही है, दिल्ली में संक्रमण दर 36 फीसदी से घट 6 फीसदी

देश में Corona वायरस की संक्रमण दर कम होने का सिलसिला जारी है। हर दिन संक्रमण की दर में औसतन एक फीसदी से ज्यादा की कमी आ रही है।

Corona update चार हजार से ज्यादा मौतें, ज्यादातर राज्यों में मौतों की बढ़ती संख्या

नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या लगातार कम हो रही है, एक्टिव केसेज भी कम हो रहे हैं और संक्रमण की दर भी कम हो रही है। भारत सरकार ने मंगलवार को फीलगुड फैक्टर बताते हुए कहा कि देश में सिर्फ 1.8 फीसदी आबादी ही संक्रमित हुई है। साथ ही सरकार ने बताया कि संक्रमण दर कम होकर 14 फीसदी हो गई है और अब देश के आठ राज्यों में ही एक लाख से ज्यादा एक्टिव केस हैं। इसके बावजूद यह हकीकत है कि मौतों की संख्या कम नहीं हो रही है। कोरोना वायरस के संक्रमण से मरने वालों की संख्या लगातार चार हजार से ऊपर बनी हुई है। मंगलवार को खबर लिखे जाने तक 4,218 लोगों की मौत हुई। कोरोना से ज्यादा संक्रमित राज्यों में से एक-दो को छोड़ कर ज्यादातर राज्यों में मौतों की संख्या कम नहीं हो रही है। कर्नाटक में सोमवार को 467 लोगों की मौत हुई, जबकि मंगलवार को यह बढ़ कर 525 हो गई। महाराष्ट्र में रिकार्ड संख्या में 1,291 लोगों की मौत हुई। पंजाब में 231 लोगों की मौत हुई तो छोटे-छोटे राज्यों में भी रिकार्ड संख्या में मौतें दर्ज की गईं। उत्तराखंड में 98, जम्मू कश्मीर में 71,… Continue reading Corona update चार हजार से ज्यादा मौतें, ज्यादातर राज्यों में मौतों की बढ़ती संख्या

लॉकडाउन ही भारत का अकेला तरीका!

हां, इसके अलावा भारत के पास दूसरा कोई तरीका नहीं है। लेकिन इस तरीके से भारत में संक्रमण कभी खत्म नहीं होगा। वायरस दबेगा, रूकेगा मगर मरेगा नहीं। तभी भारत लगातार (सन् 2022-23 में भी) सौ जूते-सौ प्याज खाने, बेइंतहां रोगी-बेइंतहां मौतों का वैश्विक रिकार्ड बनाएगा। भूल जाएं कि भारत में संक्रमण खत्म करने का फिलहाल कोई औजार है। भारत देश के पास वायरस पूर्व के सहज जीवन में लौटाने का न तरीका है, न साधन है और न समझ। बस, बार-बार लॉकडाउन और बार-बार अनलॉक में ही 140 करोड़ लोगों को सन् 2021, सन् 2022-23 के अगले दो-ढाई साल काटने हैं। दुनिया में सबके बाद (यहां अर्थ विकसित-बड़े-प्रमुख विकासशील देशों का) भारत सामान्य होगा। तब तक सांस बनवाए रखने का एकमेव तरीका बार-बार लॉकडाउन है। हमें जान लेना चाहिए कि कोविड-19 वायरस को बेकाबू होने से तभी रोका जा सकता है जब लोगों की आवाजाही, मेल-मुलाकात पर ताला लगे। लोगों का परस्पर संपर्क न्यूनतम हो। सब लोग घर में बैठें। वायरस को घर-घर ताला मिलेगा तभी संक्रमण थमेगा व मरीज और मौत संख्या घटेगी। यह भी पढ़ें: मेरे तो गिरधर गोपाल (मोदी), दूसरा न कोई! जाहिर है लॉकडाउन से भारत में वायरस वैसे खत्म नहीं हो सकता है जैसे… Continue reading लॉकडाउन ही भारत का अकेला तरीका!

सारी गफलतें एक बराबर!

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर को  लेकर एक छायावादी टिप्पणी में कहा है कि ‘पहली लहर जाने के बाद हम सब जरा गफलत में आ गए। क्या जनता, क्या शासन, क्या प्रशासन। डॉक्टर लोग इशारा दे रहे थे। फिर भी थोड़ी गफलत में आ गए। इसलिए ये संकट खड़ा हुआ’। सवाल है कि क्या ‘जनता, शासन और प्रशासन’ सबकी गफलतें एक बराबर हैं? या प्रशासन और उससे भी ऊपर शासन की गफलत को ज्यादा बड़ा और कुछ हद तक अक्षम्य माना जाना चाहिए? जनता के लिए तो हमारे नीतिश्लोकों में कहा गया है- महाजनो येन गतः स पंथा। इसका मतलब है कि महाजन यानी समाज के अग्रणी लोग जिस रास्ते से जाएं जनता को उसी रास्ते जाना चाहिए। सो, जनता की लापरवाही या गफलत तो महाजन यानी अग्रणी लोगों को देख कर हुई। जब देश के प्रधानमंत्री ने कोरोना के खिलाफ जंग मे जीत का ऐलान कर दिया, जब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बड़ी बड़ी चुनावी रैलियां करने लगे, धर्मगुरुओं ने कुंभ की तैयारियां शुरू कर दीं, प्रशासन ने सिनेमा हॉल से लेकर होटल, रेस्तरां, बार सब कुछ खोल दिए तो फिर जनता की गफलत का क्या मतलब! जनता तो वही… Continue reading सारी गफलतें एक बराबर!

संक्रमण घटा पर मौतें बढ़ीं, लगभग हर राज्य की यह स्थिति

संक्रमण के केसेज कम होने लगे हैं और संक्रमण की दर भी कम हो रही है लेकिन मरने वालों की संख्या में कमी नहीं हो रही है…

कोरोना का तीसरा हमला ?

अमेरिका-जैसे कुछ देशों में लोग मुखपट्टी लगाए बिना इस मस्ती में घूम रहे हैं, जैसे कि कोरोना की महामारी खत्म हो चुकी है। उन्होंने दो टीके क्या लगवा लिये, वे सोचते हैं कि अब उन्हें कोई खतरा नहीं है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टी.ए. ग्रेब्रोसिस ने सारी दुनिया को अभी से चेता दिया है। उनका कहना है कि यह दूसरा साल, कोविड-19 का, पिछले साल से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। उसने तो सिर्फ एक खतरा बताया है। वह यह कि कोरोना की इस महामारी के सिर पर अब एक नया सींग उग आया है। वह है- बी.1.617.2. यह बहुत तेजी से फैलता है। यह तो फैल ही सकता है लेकिन मुझे यह डर भी लगता है कि भारत की तरह अफ्रीका ओर एशिया के गांवों में यह नया संक्रमण फैल गया तो क्या होगा ? हमारे गांवों में रहनेवाले करोड़ों लोग भगवान भरोसे हो जाएंगे। न उनके पास दवा है, न डाॅक्टर है और न ही अस्पताल। उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे शहरों में आकर अपना इलाज करवा सकें। इस समय भारत में 18 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन… Continue reading कोरोना का तीसरा हमला ?

प्रतिदिन 4 हजार मौतें या 25 हजार या….?

सन् इक्कीस की मई में भारत झूठ में नरक है। दुनिया का ‘मानवीय संकट’ है! इस संकट का एक पहलू लोगों का मरना है! इसका भी भयावह-नरसंहारक रूप लावारिश, गुमनाम मौत है। नदियों में लाशे बह रही है, श्मशान में कतार में अर्थियां है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार लाउडस्पीकर से जिंदा जीव को सुना रहे है कि रोते-रोते हंसना सीखों!….यह पोजिटिवीटी बनाओं कि तुम तो जिंदा हो! उफ! घिन और नीचता वाला यह नैरेटिव! … लेकिन हम सदा-सर्वदा ऐसे ही मरते है। सन् 1918-19-20 में हिंदू ऐसे ही करोडों की तादाद में मरे थे। तब साहित्यकार सुर्यकांत निराला ने इलाहाबाद में अपने गांव में अपने परिजनो की एक के बाद एक मौतों और गंगा किनारे की दशा में लिखा था – लाशे ही लाशे! .. पर वे भी न समझ पाएं, न गिनती कर पाएं, न लिख पाएं कि मृतकों की कितनी संख्या! न अंग्रेज सरकार की गिनती, न गंगा किनारे हिंदू मठो-मंदिरों के धर्माचार्यों द्वारा बहती अर्थियों की चिंता और न जनता को सुध कि कितने लाख-करोड मर रहे है। वह वक्त हूबहू 2021 में अपने को दोहराता हुआ। … बस एक फर्क.. तब अंग्रेज हिंदुओं को यह बहलाते हुए नहीं थे कि महामारी में भी… Continue reading प्रतिदिन 4 हजार मौतें या 25 हजार या….?

गांवों में तो प्रलय!

पता है आपको सन् 1918-20 के स्पेनिश फ्लू में असली भारत, रियल भारत में कितने करोड़ भारतीय मरे थे? कोई पौने दो करोड लोग। ब्रितानी नियंत्रित जिलों और राजे-रजवाड़ों वाले इलाकों के आंकड़ों से कुछ अस्पटता है मगर मौटे तौर पर महामारी-वायरस की सर्वाधिक मारक लहर के तीन महिनों में कोई सवा करोड भारतीयों की मौत का आंकडा है और संक्रमित जनसंख्या का हिसाब ही नहीं। गांव के गांव साफ हुए थे। ब्रितानी इलाके की आबादी का छह प्रतिशत हिस्सा उड गया। क्या वहीं कोविड़-19 की महामारी में नहीं होगा? मैं फरवरी-मार्च 2020 से लेकर लगातार लिखता रहा हूं कि महामारी, महामारी होती है, उसका अनुभव, वैज्ञानिकता और सत्य की कसौटी से सामना होना चाहिए। लेकिन मार्च 2020 से नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने वायरस को मुंबई याकि  महानगरों से फैलाते-फैलते अब उसे असली भारत-ग्रामीण भारत में पहुंचा दिया है। किसी को पता नहीं कि सन् 1917-18 में गंगा-यमुना में कितनी लाशे बही थी ( रजवाड़े इलाके की नर्मदा में लाशों को बहाएं जाने की ब्रितानी सरकार की एक रिपोर्ट जरूर है) लेकिन उस वक्त के सबक में भी यह तय लगता है कि गंगा-यमुना दौआब और हिंदी भाषी प्रदेशों का ग्रामीण भारत इस वायरस में भी करोड़ों परिवारों… Continue reading गांवों में तो प्रलय!

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