तृणमूल कांग्रेस
ममता बनर्जी ने बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं से कहा कि संतुष्ट होकर बैठने से गलत परिणाम आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि लोगों को मतदान के लिए जागरूक….
वैसे तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने देश में ऐसी धारणा बना रही कि उनकी नजरों से कुछ भी छिपा नहीं होता है और हर राजनीतिक घटनाक्रम पर उनकी नजर होती है।
मुकुल रॉय पूरी तरह से त्रिपुरा की राजनीति कर रहे हैं तो हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल में शामिल हुईं सुष्मिता देब को भी ममता ने वहां बंगाली मतदाताओं को साथ करने के काम में लगाया है।
तृणमूल कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी ट्वीट कर भाजपा के पूर्व मंत्री बाबुल सुप्रियो के टीएमसी में शामिल होने की जानकारी दी गई है।
तृणमूल कांग्रेस के नेता की हत्या के बाद पार्टी के नेताओं ने हत्या का आरोप भाजपा पर लगाया है। उनका कहना है कि चंचल बख्शी एक लोकप्रिय नेता थे, जिसके चलते ’भाजपा के गुंडों’ ने बख्शी की हत्या की है।
BJP और अन्य पार्टियों के विधायक खुद की पार्टियों को छोड़कर लगातार टीएमसी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में लगता है कि West Bengal में ममता दीदी का जादू चले ही जा रहा है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जब भी भारतीय जनता पार्टी के नेता बंगाल के दौरे पर जाते थे उनको काले झंडे दिखाए जाते थे। उनकी गाड़ियों पर पथराव भी किया जाता था।
यूपीए का ढांचा नए सिरे से खड़ा करने या नया गठबंधन बनाने में कांग्रेस की समस्या यह है कि राहुल गांधी से ज्यादातर विपक्षी नेताओं को दिक्कत है। ज्यादातर बड़ी पार्टियों के नेता राहुल को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं।
अमित शाह ने अपने खास अंदाज में घटना की क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि इस तरह की चीजों से कुछ लोग विकास को पटरी से उतारना चाहते हैं। मकसद तो सरकार ने बता दिया पर बड़ा सवाल है कि कौन ऐसा कर रहा है? सरकार उसका पता क्यों नहीं लगा रही है और सबसे बड़ा सवाल यह है कि संसद नहीं चलने का फायदा किसको होना है?
आम आदमी पार्टी को पंजाब में इस बार ज्यादा आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ना है। तभी आप ने कृषि बिल पर चर्चा के लिए नोटिस दिया है। कायदे से कृषि कानूनों और किसानों का मुद्दा समूचे विपक्ष को साझा तौर पर उठाना चाहिए था। कांग्रेस, लेफ्ट, एनसीपी आदि पार्टियों को एक साथ मिल कर यह मुद्दा उठाना चाहिए था।
ममता बनर्जी 21 जुलाई को शहीद दिवस के मौके पर हर साल एक बड़ी रैली करती हैं और जनसभा को संबोधित करती हैं। 1993 में 21 जुलाई के दिन यूथ कांग्रेस के 13 कार्यकर्ता पुलिस फायरिंग में मारे गए थे।
केंद्र में मंत्री बनाए गए सर्बानंद सोनोवाल को भी राज्यसभा में जाना है क्योंकि वे अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। फिर उनके लिए असम में खाली हुई सीट पर उपचुनाव की घोषणा क्यों नहीं की गई?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को उस सीट से उच्च सदन में भेजा जा सकता है। हालांकि मिलिंद देवड़ा से लेकर संजय निरूपम, राजीव शुक्ला और रणदीप सुरजेवाला तक कई और भी दावेदार हैं। तमिलनाडु में खाली हुई तीन में से एक सीट कांग्रेस को मिलेगी।
Dinesh Trivedi BJP TMC : दिनेश त्रिवेदी 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे और एक साल के अंदर पहला मौका मिलते ही ममता बनर्जी ने उनको राज्यसभा में भेज दिया। लेकिन उसके एक साल के अंदर ही त्रिवेदी ने पश्चिम बंगाल के चुनावी हालात का गलत आकलन किया और ममता को डूबता जहाज समझ कर भाजपा की नाव पर सवार हो गए। उनका राज्यसभा का कार्यकाल पांच साल बचा हुआ था। उन्होंने वह छोड़ा तो जाहिर है कुछ बड़ी उम्मीद कर रहे होंगे। तभी सवाल है कि भाजपा अब उनको क्या देगी? क्या भाजपा कहीं से उनको राज्यसभा में भेजेगी? कम से कम इतना तो उनका अधिकार बनता है! यह भी पढ़ें: बगलें झांकते भारत व पाक इस बीच यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि कहीं वे भी मुकुल रॉय वाली गति को प्राप्त न हों। आखिर मुकुल रॉय भी राज्यसभा छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे और तीन साल के बाद भाजपा ने उनको विधानसभा की टिकट दी थी। राज्यसभा के लिए वे ऐड़ी रगड़ते रह गए। अंत में वापस ममता के यहां लौटे। यही स्थिति ओड़िशा के बेहद लोकप्रिय नेता बैजयंत जय पांडा की है। उन्होंने भी बड़ी उम्मीद से भाजपा ज्वाइन की थी।… Continue reading दिनेश त्रिवेदी किस गति को प्राप्त होंगे?
भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षा से चिंतित हैं और मान रहे हैं कि ममता वह कर सकती हैं, जो आज तक विपक्ष का कोई नहीं कर सका है? ध्यान रहे विपक्ष का कोई नेता लोकप्रियता और विश्वसनीयता के मामले में नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं दे सका है। अखिल भारतीय स्तर पर किसी नेता की वैसी पहचान और साख भी नहीं बनी है, जैसी मोदी की है। लेकिन बंगाल में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने और सीधे मुकाबले में मोदी और अमित शाह को हराने के बाद ममता चुनौती बन सकती हैं। यह भी पढ़ें: शिव सेना जानती है कांग्रेस की मजबूरी असल में ममता बनर्जी ने बंगाल में कई मिथक तोड़े हैं। मोदी की लोकप्रियता, शाह की रणनीति और भाजपा की ध्रुवीकरण कराने की क्षमता के मिथक टूट गए हैं। इसका असर दूरगामी होगा। ऊपर से ममता बनर्जी को दूसरे कई नेताओं के मुकाबले बहुत एडवांटेज हैं। उनके भतीजे को भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने की केंद्रीय एजेंसियों के तमाम प्रयासों के बावजूद ममता के भ्रष्ट होने का नैरेटिव नहीं बन पाया है। उनकी ईमानदारी और सादगी सहज रूप से स्वीकार्य है। दूसरे, वे महिला हैं और जुझारू हैं। तीसरे, कांग्रेस छोड़… Continue reading ममता को बंगाल में ही रोकने का प्रयास