फौज
म्यांमार में सेना का दमन जारी है। 600 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। आजादी के बाद भारत के पड़ौसी देशों— पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव— आदि में कई बार फौजी और राजनीतिक तख्ता-पलट हुए और उनके खिलाफ इन देशों की जनता भड़की भी लेकिन म्यांमार में जिस तरह से 600 लोग पिछले 60-70 दिनों में मारे गए हैं, वैसे किसी भी देश में नहीं मारे गए। म्यांमार की जनता अपनी फौज पर इतनी गुस्साई हुई है कि कल कुछ शहरों में प्रदर्शनकारियों ने फौज का मुकाबला अपनी बंदूकों और भालों से किया। म्यांमार के लगभग हर शहर में हजारों लोग अपनी जान की परवाह किए बिना सड़कों पर नारे लगा रहे हैं। लेकिन फौज है कि वह न तो लोकनायक सू ची को रिहा कर रही है और न ही अन्य छोटे-मोटे नेताओं को! उन पर उल्टे वह झूठे आरोप मढ़ रही है, जिन्हें हास्यास्पद के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। यूरोप और अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद म्यांमार की फौज अपने दुराग्रह पर क्यों डटी हुई है ? इसके मूल में चीन का समर्थन है। चीन ने फौज की निंदा बिल्कुल नहीं की है। अपनी तटस्थ छवि दिखाने की खातिर उसने कह दिया है कि फौज और… Continue reading म्यांमारः भारत दृढ़ता दिखाए
मैने चार-पांच दिन पहले लिखा था कि म्यांमार (बर्मा) में चल रहे नर-संहार पर भारत चुप क्यों है ? उसका 56 इंच का सीना कहां गया लेकिन अब मुझे संतोष है कि भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ और दिल्ली, दोनों स्थानों से म्यांमार में चल रहे फौजी रक्तपात पर अपना मुंह खोलना शुरु कर दिया है। 56 इंच का सीना अभी न तो भारत ने दिखाया है और न ही भिड़ाया है। अभी तो उसने सिर्फ सीने की कमीज के बटनों पर उंगलियां छुआई भर हैं। इसमें शक नहीं कि म्यांमार में अभी जो कुछ हो रहा है, वह उसका आतंरिक मामला है। भारत को उससे कोई ऐसा सीधा नुकसान नहीं हो रहा है कि उससे बचने के लिए भारत अपना खांडा खड़काए लेकिन सैकड़ों निहत्थे और निर्दोष लोगों का मारा जाना न केवल लोकतंत्र की हत्या है बल्कि मानव-अधिकारों का भी हनन है। म्यांमार में फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं बनी है, जैसी कि गोआ और पूर्वी पाकिस्तान में बन गई थी। लेकिन दो माह तक भारत की चुप्पी आश्चर्यजनक थी। उसके कुछ कारण जरुर रहे हैं। जैसे बर्मी फौज के खिलाफ बोल कर भारत सरकार उसे पूरी तरह से चीन की गोद में धकेलना नहीं चाहती होगी। बर्मी… Continue reading म्यांमार पर कूटनीति अब ठीक
म्यांमार के सैनिक शासक अपनी छवि सुधारना चाहते हैं। यानी वे चाहते हैं कि जिस तरह का दमन कर रहे हैं, दुनिया उस पर ध्यान ना दे। या ध्यान दे तो यह समझे कि आखिर वे क्यों ऐसा कर रहे हैं।
म्यांमार में इस बार सैनिक शासकों के लिए पहले जैसी आसानी नहीं है। इस बार वहां की जनता ने साफ कर दिया है कि उन्हें लोकतंत्र का गला घोंटा जाना मंजूर नहीं है
great spirit in myanmar : म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बाद इस बार वहां की जनता ने गजब का जज्बा दिखाया है।
म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ रविवार को हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची की रिहाई की मांग की।
तो आखिरकार म्यांमार में सेना ने तख्ता पलट दी। नव निर्वाचित संसद की बैठक से ठीक पहले वाली रात में वहां एक दशक पहले वाली हालत बहाल कर दी गई। आंग सान सू ची सहित तमाम राजनेता जेल में डाल दिए गए।
भारत के पड़ौसी देश म्यांमार (बर्मा या ब्रह्मदेश) में आज सुबह-सुबह तख्ता-पलट हो गया। उसके राष्ट्रपति बिन मिन्त और सर्वोच्च नेता श्रीमती आंग सान सू की को नजरबंद कर दिया गया है