बेबाक विचार
सब कुछ raashtr के नाम पर है। भारत को महान बनाने के नाम पर है। गंगा-बनारस सब देश का गौरव बढ़ाने के लिए हैं।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के नीति-सिद्धांत का कोर बिंदु पुण्यभूमि के गौरव में है। हम और वे का पूरा सिद्धांत इस बात पर है कि भारत जिनकी मातृभूमि है उनकी पुण्यभूमि दूसरी जगह कैसे हो सकती है? फिर इस पुण्यभूमि की आज ऐसी हालत क्यों है? इस पुण्यभूमि पर कैसा संकट आया हुआ है और इस संकटकाल में जिनके ऊपर इसकी रक्षा का भार है वे क्या कर रहे हैं? इस महान गौरवशाली सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले कहां हैं? साहिर ने आजादी के थोड़े समय बाद ही लिखा था- जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ, ये कूचे-ये गलियां-ये मंजर दिखाओ। आज फिर यह कहने का समय है। मुल्क के रहबरों को बाहर निकलना चाहिए। गंगा की रेती में दबी या गंगा की लहरों में डूबती-उतराती लाशों को देखना चाहिए। गलियों से उठते क्रंदन को सुनना चाहिए। अस्पतालों के अंदर-बाहर हो रही प्रार्थनाओं की आवाजें सुनने की कोशिश करनी चाहिए। इंसानियत के नाते नहीं तो अपनी पुण्यभूमि की रक्षा करने की जिम्मेदारी के नाते ही इसे बचाने की कोशिश करनी चाहिए। राष्ट्रकवि दिनकर ने आजादी से पहले और बाद में भी कई मौकों पर पुण्यभूमि के संकट का आख्यान लिखा और मुल्क के रहबरों व नागरिकों को ललकारते हुए उन्हें हकीकत… Continue reading कहां है पुण्यभूमि का गौरव
दुनिया भर से आ रहे चिंता जताने वाले संदेश, सरोकार दिखाने वाले सवालों से इनबॉक्स भरे हैं। मैं कई दिनों तक उनकी अनदेखी करती हूं पर सवालों में चिंता बढ़ती जाती है। ….. लेकिन मैं उनसे क्या कहूं? क्या यह कहूं मैं ठीक हूं, जबकि यहां से हजार किलोमीटर दूर शवों के ऊपर टायर और केरोसीन डाल कर उन्हे जलाया जा रहा है?…. झूठ है कि सब ठीक है, मरीजों की संख्या कम हो रही है, जबकि गांवों में लोग सामूहिक रूप से अपनों का जलप्रवाह कर रहे हैं। अब मैं भूल चुकी हूं कि साफ हवा की गंध कैसी होती है। लेकिन मैं कह सकती हूं कि बाहर की हवा भी अंदर की हवा की तरह बासी और जहरीली है। इसमें भय की कच्ची गंध, पागलपन का पसीना और मुश्किलों की सड़ांध है। पिछली बार से बदला हुआ..इस बार घबराहट में होने वाली खरीद नहीं है। मैगी के पैकेट खरीद कर घरों में नहीं भरे जा रहे हैं और न चावल, दाल, पास्ता या चटनी-केचअप की खरीद हो रही है, खुशबूदार बॉडीवॉश या यहां तक कि आटा-मैदा भी खरीद कर नहीं भरा जा रहा है। इस बार सड़कों पर आवारा कुत्ते घबराए हुए नहीं हैं। वे खाना देने वाले… Continue reading वक्त आज.. मैंने हवाओं से पूछा!
अक्षय तृतीया की सुबह… मेरी आंखें भोपाल से आई परशुराम की एक छवि पर अटकी। सवाल कौंधा- हम कलियुगी ब्राह्मण क्या परशुराम वंशज हैं? आज के ब्राह्मणों का भला परशुराम के ओज, तप, स्वाभिमान, शास्त्र-शस्त्र से क्या नाता? सतयुग के ऋषि-मुनियों ने कहा है- महाजनो येन गतः स पन्थाः! तो क्या ब्राह्मणों ने महापुरूष परशुराम के अनुसरण में अपने को उन जैसे संस्कारों में रचा-पकाया है? सतयुग का मंत्र है ‘शिव’ बन कर ही ‘शिव-पूजा’ करो (शिवो भूत्वा शिवम् यजेत्)। जिस पूर्वज से हम हैं उस अनुरूप बन उसकी पूजा करेंगे तभी है सार्थकता। उस नाते आज के ब्राह्मणों को क्या पता है कि परशुराम का ब्राह्मण होना क्या था? ब्राह्मणत्व, ब्राह्मणपना क्या है? क्या वे आज परशुराम के विपरीत दास-याचक-भक्ति वृत्ति, गोबर शास्त्र में बुद्धि भ्रष्ट-नष्ट नहीं किए हुए हैं? क्या वे धर्म, समाज, घर-घर में गोबर ज्ञान-प्रचार से बुद्धिहीनता की महामारी बना 140 करोड़ लोगों का अंधकार नहीं बना बैठे हैं? अपने को क्या महज एक जाति नहीं बना दिया है? हां, शायद जाग्रत इतिहास के दो हजार सालों का कोई पाप है, कलियुग की अति है, जो न केवल परशुराम वंशज ब्राह्मणत्व खंड-खंड है, बल्कि धर्म-कौम सहित भारत भी श्रीहीन! यह भी पढ़ें: भारत माता पर पहले… Continue reading ब्राह्मण आज
मां!…क्षमा करें…मेरे पास न वंदना है, न जय। उलटे मैं अपनी कल्पना, आपके चित्र, आपकी दशा से कंपायमान हूं, व्यथित हूं….आपकी धरा पर धरा के मूर्त अनुभव में। कंपकंपाहट इसलिए कि भागीरथ जिस धरा पर लाए थे गंगा, उसमें मानव अर्थियां बहती हुईं। जिस धरा पर ज्ञान-विज्ञान-सत्य की पावन, गंगा अविरल थी वह अब मूर्खता-गोबर-झूठ की टर्र-टर्र वाला कुंआ है। जो ऋषि-मुनियों की थी दिव्यधरा…. कण कण में था बल विक्रम, पौरुषता का आह्वान.. वह अब दास्य और भक्ति वृत्ति में रची पकी है। सभी हो गए हैं भाग्य भरोसे! जिस धरा पर उन्नत शीश हिमालय की कालजयी सुरक्षा थी उसे दुश्मन चीन रौंदता हुआ। जिस धरा पर रोगों का नाश करने वाली चंडिके (स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वाम चण्डिके व्याधिनाशिनि) का वास था वहां दसों दिशाओं में नर-नारी रोते हुए। यह भी पढ़ें: सांस! हे मां..आप ही हैं न भारत नाम के राष्ट्र-राज्य की माता? क्या आप आज पृथ्वी की उस भूमि को पहचान पा रही हैं, जिसे अपने केसरिया आंचल, भगवा ध्वज, और शक्तिमान-रौद्र सिंह के तेज से राष्ट्रभाव की दिव्य चेतना में आपने रंगा था। जिसको ले कर बांग्ला साहित्यकार किरनचंद्र बन्दोपाध्याय ने नाटक के जरिए और पत्रकार-गद्यकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदेमातरम’ लिख कोटी-कोटी हिंदुओं में चेतना बनवाई कि ‘जननी… Continue reading भारत माता
मैं राम के उगते सूरज में पैदा हुआ! मेरे घर में राम की तब पार्टी थी जब मैं छह-सात साल का था। मेरे पिता गोविंद प्रसाद व्यास ने 1962 में ‘राम’ के नाम पर विधायक बनने के लिए चुनाव लड़ा।
परसों मैं वर्षों बाद दिल्ली का करोलबाग घूमा। सोमवार को बाजार बंद रहता है और फुटपाथ बाजार लगता है। 35 साल पहले मैं करोलबाग-देवनगर में रहता था तब भी सोमवार को फुटपाथ बाजार लगा करता था। पर इस सोमवार बाजार देख झनझना उठा। करोलबाग-रैगरपुरा में मुख्य सड़क या गलियों में इतनी-ऐसे दुकानें, इतनी भीड़ मानो झुग्गी-झोपड़ी में हाटबाजार, कीड़े-मकोड़ों का संसार! उफ! कितना कैसा बदला यह करोलबाग-रैगरपुरा-देवनगर इलाका। छोटी-छोटी गलियां भी बाजार में बदली हुईं और उटपटांग निर्माण तो बस्तर के हाट से भी ज्यादा भदेस चीजें, कपड़े-बिंदी से ले कर फुटपाथ पर तले जाते भटूरे, खाने-पीने की चीजें, सब्जियां, मोबाइल एक्सेसरीज। समझ नहीं आया की 35 साल पहले की स्मृतियों के देवनगर-राजेंद्रनगर के बीच के संपन्न इलाके करोलबाग में भला सौ रुपए की जिंस वाला हाट बाजार किन झुग्गी-झोपड़ियों के लिए है? विचार किया तो लगा कि करोलबाग की मुख्य सड़क भले सर्राफा बाजार माफिक सोने-चांदी की दुकानों से भरी हो लेकिन अगल-बगल की गलियों में सस्ते जूते, कपड़े बेचते सप्लायरों और रैगरपुरा-आनंद पर्वत की तंग गलियों के घरों में क्योंकि भीड़ अथाह बस गई है तो जीना भले कच्ची झुग्गी-झोपड़ी वाला न हो लेकिन वह पक्की झुग्गी-झोपड़ी से बेहतर कितना होगा? कोई माने या न माने, अपना ऑब्जर्वेशन… Continue reading फुटपाथ बाजार है भारत का विकास!
एक पुरानी कहावत है कि इस दुनिया में सारे विवादों की जड़ जर, जोरू और जमीन होती है। महाभारत का कारण कौरवों द्वारा अपने भाई पांडवों को एक इंच तक जमीन ने देने से साफ इंकार कर देना था। जबकि रामायण राम और रावण के टकराव की वजह उनकी पत्नी सीता बनी। पूरी दुनिया में तो एक दूसरे पर कब्जा करने उसकी संपत्ति हथियाने के लिए झगड़े होते आए हैं। और अब देश के संपन्न राज्य पंजाब में जमीन के कारण एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इस देश में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के लोग पंजाब में रहते हैं। जहां देश की जनसंख्या का औसत 37.45 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जाति के लोगों का है वहीं पंजाब में उनका 37.46 फीसदी है। इनमें से बड़ी तादाद में दलित कहे जाने वाले या तो भूमिहीन व गरीब है। उनकी माली हालत सुधारने के लिए राज्य सरकार ने पंजाब विलेज कामनलैंड एक्ट का गठन किया। गांव की शामलात जमीन को उन्हें पट्टे पर देना शुरू कर दिया। शामलात जमीन गांव की वह जमीन होती है जिसका कि मालिक पूरा गांव होता है। यह जमीन ऐसे किसानों को खेती करने के लिए हर साल दी जाती है। पंजाब में कुल 1.5 लाख… Continue reading सरकारी जमीनों की बंदरबांट
हां, पैसे-आमद-खर्च को ले कर भारत के घर-परिवारों में फिलहाल जो औसत दशा है वहीं भारत सरकार की अब है और यह 2020-21 के आम बजट से प्रमाणित है। जैसा मैंने बजट से पहले लिखा कि लोग खरीद नहीं रहे हैं। या तो पैसा है नहीं या पैसा निकाल नहीं रहे हैं। जोखिम नहीं ले रहे हैं। आम मूड है कि पता नहीं कल क्या हो!वही दशा भारत सरकार की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बहुत लंबा भाषण दिया। छोटे व मझोले आयकरदाताओं को टैक्स कमी के कुछ झुनझुने दे कर देश को समझाना-जतलाना चाहा कि सब ठीक है। सब कंट्रोल में है। पर जैसे घर-परिवार, औसत भारतीय के दिल-दिमाग में इन दिनों कड़की, बेरोजेगारी, चौपट काम और भविष्य की चिंता है वैसे ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें हैं। सरकार अपनी कंगली दशा को छुपाने के लिए भारी उलझन में है। सचमुच वर्ष 2020-21 के बजट से क्या केंद्र सरकार और प्रदेशों दोनों की सरकारों में पैसा उड़ेल कर लोगों का जीना आसान बनाने, नए प्रोजेक्ट शुरू करने और पुरानी चल रही योजनाओं में पैसा खर्च करने या पूंजीगत निवेश करने-करवाने की क्षमता है! ये भी सब सूखी है, ठहरी और ठिठकी व संकट… Continue reading बजटः सरकार भी ठिठकी, ठहरी
आज वसंत पंचमी है। सरस्वती उर्फ ज्ञान, बुद्धि, विद्या की देवी की पूजा का दिन। मैं पिछले तीन वर्षों से सोचता आ रहा हूं कि इस दिन से हम हिंदुओं के सनातनी ज्ञान, सत्व-तत्व, हिंदू ग्रंथों का आज की हिंदी, मौजूदा वक्त के परिप्रेक्ष्य, वक्त के मुहावरों-जुमलों, भाषा शैली, आधुनिक प्रकृति,माध्यमों में पुनर्लेखन का वह संकल्प शुरू हो, जो मैंने और अपने उद्योगपति शुभचिंतक कमल मुरारका ने फाउंडेशन के एक खांचे में सोचा है। मेरा मानना है (या गलतफहमी?) कि यदि मैंने और मेरे संपादकत्व में चार-पांच हिंदी कलमघसीटों ने अपने आपको पांच-दस साल खपा कर पुनर्लेखन व संपादन का यह काम नहीं किया तो मौजूदा और आगे की पीढ़ियों के लिए महाभारत, रामायण के दो पेज पढ़ना-समझना भी मुश्किल होगा। मेरे बाद की पीढ़ी के मेरे पाठक भी आज सौ साल पहले गीता प्रेस के जरिए प्रसारित महाभारत में हिंदी के दो पेज में दसियों बार यदि अटकते हैं, शब्द अर्थ-बोध में भटकते हैं तो 18 से 40 साल वाली मौजूदा पीढ़ी और आगे की पीढियों के लिए हिंदुओं के तमाम ग्रंथ काला अक्षर भैंस बराबर होंगे! तभी यदि हमने यह काम नहीं किया (सौ साल पहले की खड़ी बोली को पढ़-समझ, सरकारी हिंदी से दूर रहते हुए उसे… Continue reading न हमें सरस्वती प्राप्त और न लक्ष्मी!
खेलों में मेरी कभी रूचि नहीं रही। हालांकि मैं खिलाडि़यों में रूचि रखता हूं व उनके बारे में लगातार जानकारी हासिल करता रहता हूं। जब विश्व के बास्केटबॉल के महानतम खिलाड़ी कोबे ब्रायंट की हैलीकाप्टर हादसे में मौत की खबर पढ़ी तो स्तब्ध रह गया। मेरी खेल में कोई रूचि नहीं थी मगर एक आम इंसान होने के कारण मैं इस हादसे में मारी गई उनकी 13 वर्षीय बेटी जियाना की मौत के कारण बेहद दुखी था। मैं सोच रहा था कि इस युवा खिलाड़ी व उसकी बेटी की मौत के कारण उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी? ब्रायंट आमतौर पर मैच खेलने के लिए हैलीकाप्टर से जाया करते थे। लॉसएंजेलिस में घने कोहरे के कारण उनका हैलीकाप्टर पहाड़ से टकरा गया व उसमें सवार नौ लोग मारे गए। ब्रायंट पांच बार नेशनल बास्केट बॉल एसोसिएशन के चैंपियन रहे थे। उन्होंने दो बार ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता। मालूम हो कि एनबीए दुनिया की सबसे अमीर व्यवसायिक बास्केट बल लीग है। कोबे खेल के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। उन्होंने बच्चों को इस खेल से जुड़ने के लिए किताबे लिखी थी व बास्केटबॉल को एक प्रेम कथा लिखा था जिस पर फिल्म बनाई गई व उस फिल्म… Continue reading वैश्विक खिलाड़ी कोबे ब्रायंट और हादसा
बजट से कुछ नहीं सधेगा-1: सन 2020 का मनोभाव है कि यदि सरकार किसी को लाख रुपए दे तो वह खर्च नहीं करेगा, बल्कि उसे दबा कर रख लेगा! मतलब लोगों में भरोसा खत्म है तो वह क्यों कुछ करें? लक्ष्मीजी रूठ गई हैं, घर बैठ गई हैं तो लोग भी, उद्योगपति, धन अर्जन कराने वाले उद्यमी, पुरुषार्थी सब रूठ कर घर बैठ गए हैं। इसलिए सन् 2020-21 के आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कुछ भी कर लें, साल बाद आर्थिकी एक इंच आगे बढ़ी हुई नहीं होगी। संभव है खड्डे में और ज्यादा फंसी हुई हो। पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक के गर्वनर ने सुझाव दिया कि मौद्रिक नीति के उपायों की बजाय आर्थिक सुधार किए जाने चाहिए। सवाल है क्या तो सुधार और किसे चाहिए सुधार? भारत में, भारत की मोदी सरकार में ताकत नहीं जो वह सिस्टम पर कुंडली मारे बैठे नौकरशाहों का लक्ष्मीजी के घर में जबरदस्ती की वसूली का रोल खत्म कर दे। लक्ष्मीजी के पांवों में बेड़ियां डाले मजदूर कानूनों, फैक्टरी-ईएसआई-पीएफ-प्रदूषण-अप्रत्यक्ष कर के प्रशासन आदि के इंस्पेक्टरों-अफसरों की घेरेबंदी को खत्म कर दे। जब ऐसा नहीं हो सकता तो सुधार के नाम पर नौटंकियां होनी है न कि मेक इन इंडिया बनना है।… Continue reading न लक्ष्मी चंचल, न लोग चंचल!
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशन की रिपोर्टों से यूपीए के शासनकाल में हाय-तौब मच जाती थी। इसे मीडिया मैनेजमेंट में नरेंद्र मोदी सरकार की कामयाबी ही कहेंगे, अब ऐसी रिपोर्टें भारत में सुर्खियां नहीं बनतीं। मगर इससे ये सच नहीं बदल जाता कि भारत में भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है। इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने पॉलिटिकल फंडिंग को इतना संदिग्ध बना दिया है कि उससे अतीत में उठाए गए कई कदम भी निष्प्रभावी हो गए हैं। इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स अब चलन में हैं, और उनकी वजह से भारत की छवि काफी प्रभावित हुई है। इसी का नतीजा है कि अब भ्रष्टाचार के मामले में भी भारत दो स्थान फिसल गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार अनुभव सूचकांक- 2019 में भारत का दुनिया के 180 देशों में 80वां स्थान है। वर्ष 2018 में भारत 78वें पायदान पर था। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक के दौरान इस सूचकांक की रिपोर्ट को जारी किया। सूचकांक में डेनमार्क और न्यूजीलैंड शीर्ष स्थान पर रहे, यानी वे सबसे कम भ्रष्टाचार वाले देश हैं। वहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को सूचकांक में 120वां स्थान मिला है। सूचकांक में ऊपर रहने का मतलब है भ्रष्टाचार कम होना। सूची में जो देश जितना ही नीचे हैं, वहां… Continue reading भ्रष्टाचार का अब शोर नहीं!
नंबर एक मसला, हिंदू-मुस्लिम-4 : अपने ज्ञानी स्तंभकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने हाल में लिखा कि ‘कहां चीन और कहां भारत?’ और बताया कि आज चीन में प्रति व्यक्ति आय 10 हजार डालर से ज्यादा है जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय 2000 डालर के आस-पास है। यानी चीन हमसे पांच गुना आगे है। हम चीन के पहले आजाद हुए और चीन प्रारंभिक कई वर्षों तक कम्युनिस्ट बेड़ियों में जकड़ा रहा, फिर भी उसने इतनी जल्दी इतनी उन्नति कैसे कर ली? पर ऐसा अकेले चीन का ही कमाल नहीं है। दुसरे महायुद्ध में बरबाद, धूल-धुसरित हुए जर्मनी, जापान का कमाल है, इजराइल का कमाल है, रूस का कमाल है व कई योरोपीय देशों का कमाल है तो दक्षिण-पूर्व एसिया, अफ्रिका, लातीनी अमेरिका के कई देशों का भी यह कमाल है जो विकास और जीवन की गुणवत्ता में छलांगे मारते हुए भारत से, मतलब हिंदू-मुस्लिम समस्या लिए हुए दक्षिण एसिया से कई गुना बेहतर है। आप नहीं मानेंगे इस बात को और डा वैदिक ने भी ऐसी स्थिति के लिए सोचंे छह कारणों में यह कारण नहीं बताया मगर अपना मानना है कि भारत पिछड़ा है तो वजह हिंदू बनाम मुस्लिम समस्या में भारत का चिरंतन, लगातार फंसे रहना है! जरा… Continue reading हिंदू-मुस्लिम से ही भारत पिछड़ा!
द्रह अगस्त 1947 के बाद हिंदु बनाम मुसलमान की दुश्मनी का एक फलक भारत और पाकिस्तान में रिश्ते हंै।