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चित्रकूट में संघ चिंतन और योगी

chitrakoot yogi adityanath : आश्चर्य की बात यह है कि जिस घबराहट में संघ आज सक्रिय हुआ है अगर समय रहते उसने चारों तरफ़ से उठ रही आवाज़ों को सुना होता तो स्थिति इतनी न बिगड़ती। पर ये भी हिंदुओं का दुर्भाग्य है कि जब-जब संघ वालों को सत्ता मिलती है, उनका अहंकार आसमान को छूने लगता है। देश और धर्म की सेवा के नाम फिर जो नौटंकी चलती है उसका पटाक्षेप प्रभु करते हैं और हर मतदाता उसमें अपनी भूमिका निभाता है। लेखक: विनीत नारायण chitrakoot yogi adityanath : उत्तर प्रदेश के चुनाव कैसे जीते जाएं इस पर गहन चिंतन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी अधिकारियों और प्रचारकों का एक सम्मेलन चित्रकूट में हुआ हैं। ऐसे शिविर में हुई कोई भी वार्ता या लिए गए निर्णय इतने गोपनीय रखे जाते हैं कि वे कभी बाहर नहीं आते। मीडिया में जो खबरें छपती हैं वो केवल अनुमान पर आधारित होती हैं, क्योंकि संघ के प्रचारक कभी असली बात बाहर किसी से साझा नहीं करते। इसलिए अटकलें लगाने के बजाए हम अपनी सामान्य बुद्धि से ही इस महत्वपूर्ण शिविर के उद्देश्य, वार्ता के विषय और रणनीति पर अपने विचार बना सकते है। जहां तक उत्तर प्रदेश के आगामी विधान… Continue reading चित्रकूट में संघ चिंतन और योगी

भागवत के भाषण का मतलब

RSS chief mohan Bhagwat speech : राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का यह कहना मामूली नहीं है कि ‘यदि कोई कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता है तो वह हिंदू नहीं है’। उनकी यह बात भी मामूली नहीं है कि ‘गाय के नाम पर दूसरों को मारने वाले हिंदुत्व के विरोधी हैं’। देश के मुसलमानों को भरोसा दिलाने वाली उनकी यह बात भी गैरमामूली नहीं है कि ‘मुसलमान इस भय चक्र में न फंसें कि भारत में इस्लाम खतरे में है’। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यक्रम में उनकी कही यह बात भी गौरतलब है कि ‘वे छवि बदलने या वोट बैंक की राजनीति के लिए इस कार्यक्रम में नहीं शामिल हुए। संघ राजनीति नहीं करता है और न छवि की चिंता में रहता है। संघ का काम राष्ट्र और समाज के हर वर्ग के लिए काम करना है’। यह भी पढ़ें: क्या शिव सेना-भाजपा में कोई खिचड़ी? मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यक्रम में संघ प्रमुख का दिया पूरा भाषण पहली नजर में देखने पर लगता है कि यह संघ की विचारधारा के बारे में स्थापित धारणा से बिल्कुल उलट है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। इस भाषण के कुछ अंश जरूर संघ की विचारधारा से… Continue reading भागवत के भाषण का मतलब

भागवत और मोदीः हिम्मत का सवाल

bhagwat and pm modi : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने मुसलमानों के बारे में जो हिम्मत दिखाई, यदि नरेंद्र मोदी चाहते तो वैसी हिम्मत वे चीन के बारे में भी दिखा सकते थे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे होने पर चीन के राष्ट्रपति शी जिन फिंग को अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने बधाइयां दीं लेकिन हमारे मोदीजी चुप्पी खींच गए, हालांकि दोनों की काफी दोस्ती रही है। दूध पीना और महंगा! Mother Dairy ने भी बढ़ाए दूध के दाम, कल से 2 रुपए देने होंगे ज्यादा मोदी की मजबूरी थी, क्योंकि वे बधाई देते तो कांग्रेसी उनके पीछे पड़ जाते। वे कहते कि गलवान घाटी पर हमला बोलने वाले चीन से सरकार गलबहियां कर रही है। उधर 4 जुलाई को अमेरिका का 245 वां जन्म-दिवस था। मोदी ने बाइडन को बड़ी गर्मजोशी से बधाई दी। यह बिल्कुल ठीक किया लेकिन अब पता नहीं कि चीन के स्थापना दिवस (1 अक्तूबर) पर वे उसको बधाई भेजेंगे या नहीं ? इसी प्रकार 1 अगस्त को चीन की पीपल्स आर्मी के जन्म दिन पर क्या हमारा मौन रहेगा? 15 अगस्त के मौके पर शी जिन फिंग की भी परीक्षा हो जाएगी लेकिन इनसे भी बड़ा सवाल यह है कि ब्रिक्स… Continue reading भागवत और मोदीः हिम्मत का सवाल

संघ परिवार:  संगठन या सराय?

तो यह संगठन किस का है, जिसे हिन्दू समाज पर पड़ती चोटों से तिलमिलाहट नहीं होती? उत्तर है – केवल अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं का, बस अपना हितचिंतक। तुलना करें:  चर्च, इस्लामी हितों को छूते ही देश में छोटे-बड़े क्रिश्चियन/मुस्लिम नेता फौरन, सड़क से संसद, हर जगह चीखते-चिल्लाते सिर पटकते हैं। बेपरवाह कि उन के पास क्या संगठन, कितने सांसद, विधायक हैं या नहीं हैं। वे सीधे अपने को झोंकते हैं। संघ परिवार का सारा जोर ‘संगठन’ पर है। शाखा, प्रकल्प, सम्मेलन, संस्थान, भवन, आदि। किन्तु इन के कामों में कोई एकता या संगति शायद ही होती है। एक उदाहरण उन के नेताओं में परस्पर अविश्वास-ईर्ष्या-द्वेष भी है। मानो वे किसी सराय में हों। जहाँ अलग-अलग लोग अपने-अपने अच्छे, बुरे, अनर्गल काम करते रहें। संघ को ‘परिवार’ कहना भी वही है। आखिर मोहनदास, देवदास, हरिलाल, तीन तरह के चरित्र एक ही परिवार के थे। इसे भी पढ़ें : संघ-परिवार: बड़ी देह, छोटी बुद्धि फिर, संघ ‘हिन्दू’ संगठन होने से इंकार करता है। अपने को ‘राष्ट्रीय’ कहते हुए मुसलमानों का भी नेता होने का मंसूबा पालता है। जो गाँधीजी ने किया था और हिन्दुओं को अपनी जेब में समझा था, कि ये कहाँ जाएंगे! इस प्रकार, हिन्दू समाज बिलकुल नेतृत्व-हीन है। इसीलिए हर… Continue reading संघ परिवार: संगठन या सराय?

मिथुन चक्रवर्ती भागे तो क्या होगा?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत मुंबई में फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से मिलने गए थे तो भाजपा और संघ के बहुत से समर्थकों को यह बात अच्छी नहीं लगी थी। उनका कहना था कि अगर मिथुन चक्रवर्ती को भाजपा में शामिल ही कराना था तो भाजपा का कोई नेता उनसे बात करता या संघ के किसी दूसरे पदाधिकारी को उनसे बात के लिए भेजा जाना चाहिए था। अगर मिथुन चक्रवर्ती संघ प्रमुख से मिलना चाहते थे तो वे नागपुर आकर मिलते तो ज्यादा बेहतर होता। खैर वह बात तो बीत गई। संघ प्रमुख मिथुन से मिलने गए और उसके बाद मिथुन चक्रवर्ती भाजपा में शामिल भी हो गए, लेकिन उसका कोई फायदा भाजपा को मिला, इसके संकेत नहीं हैं। यह भी पढ़ें: भारत-चीन का कारोबार डेढ़ गुना बढ़ा अब सवाल है कि जिस तरह से भाजपा में भगदड़ मची है, अगर उसमें मिथुन चक्रवर्ती भी पार्टी छोड़ दें तो क्या होगा? ध्यान रहे तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए अनेक नेता इन दिनों घर वापसी कर रहे हैं। मिथुन भी पहले तृणमूल कांग्रेस में थे और ममता बनर्जी ने उनको राज्यसभा में भेजा था। उससे पहले वे लेफ्ट के… Continue reading मिथुन चक्रवर्ती भागे तो क्या होगा?

संघ-परिवार: बड़ी देह, छोटी बुद्धि

संघ के सदाशयी लोगों को समझना होगा कि हिन्दू समाज और सच्ची चेतना मूल शक्ति है। कोई संघ/दल नहीं। चेतना ही संगठन का उपयोग करती है। इस का उलटा असंभव है। घोड़े को गाड़ी के पीछे लगाने से गंतव्य तक पहुँचना असंभव है। यह भी पढ़ें: संघ-परिवार: एकता का झूठा दंभ बंगाल की घटनाओं ने फिर दिखाया कि बड़ी कुर्सी पर बैठ जाना बल का पर्याय नहीं होता। राष्ट्रीय या राजनीतिक, दोनों सदंर्भों में बल का पैमाना भिन्न होता है। जिस में संघ-परिवार सदैव दुर्बल रहा है। तुलना में वामपंथी अधिक आत्मविश्वासी रहे हैं। संघ-भाजपा कुर्सीधारी भी उन से बचते हैं। फिर भी यदि यहाँ इन की दुर्गति नहीं हुई, तो कारण अभी भी बचा पारंपरिक हिन्दू समाज है। वह बीच में अवरोध बन कर संघ-भाजपा कुर्सीधारियों को बचाता है। पर कब तक? जिस तरह संघ-परिवार ने हिन्दू समाज को भ्रमित, विश्वासघात भी किया, तथा केवल अपनी परवाह की, जबकि सभी हिन्दू-विरोधी शत्रु निरंतर चोट कर रहे हैं; उस से यह समाज स्वयं क्षीण हो रहा है। सही दृष्टि के बिना कुर्सी से कुछ नहीं होता।  जैसे, हथियार चलाना न जानने वाले को हथियार देना व्यर्थ है! उस के भरोसे रक्षा की आस करने वाला मारा जाता है। अभी बंगाल… Continue reading संघ-परिवार: बड़ी देह, छोटी बुद्धि

संघ नेताओं के साथ ट्विटर का खेला!

केंद्र सरकार के साथ चल रहे विवादों के बीच माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने शनिवार को संघ के पदाधिकारियों के साथ कमाल का खेला किया।

सिंहासन-सप्तपदी के सात बरस बाद

जिन्हें इतिहास की समझ है, वे जानते हैं कि हुक़्मरान जब-जब कलंदरी पर उतारू होते हैं, जनता भी तब-तब चीमटा बजाने लगती है। जिन्हें समझ कर भी यह इतिहास नहीं समझना, उनकी समझ को नमन कीजिए। लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए। जनता जब अपनी पर आती है तो वह किसी गांधी-वांधी, पवार-फवार, अण्णा-केजरी की मोहताज़ नहीं होती। वह अपने नायक स्वयं निर्मित कर लेती है। मैं ने पहले भी कहा है और दोबारा कह रहा हूं कि इस साल की दीवाली गुज़रने दीजिए, उसके बाद सियासी हालात का ऊंट इतनी तेज़ी से करवट लेगा कि उसकी कुलांचें देख कर अच्छे-अच्छों की घिग्घी बंध जाएगी। जिन्हें लगता है कि नरेंद्र भाई ने अपनी मातृ-संस्था के प्रमुख मोहन भागवत के नीचे की कालीन इस तरह अपनी मुट्ठी में कर ली है कि जिस सुबह चाहेंगे, सरका देंगे, उनकी खुशफ़हमी अगली वसंत पंचमी आते-आते काफ़ूर हो चुकी होगी। कल नरेंद्र भाई मोदी को दोबारा भारत माता के माथे पर सवार हुए सात साल पूरे हो जाएंगे। अपने हर काम को करतब में तब्दील करने की ललक से सराबोर नरेंद्र भाई ने 2014 में दक्षेस देशों के शासन-प्रमुखों की मौजूदगी में भारत के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के तौर पर सिंहासन-सप्तपदी की थी और… Continue reading सिंहासन-सप्तपदी के सात बरस बाद

दबाव में बदल रही है भाजपा

भारतीय जनता पार्टी, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट रूप से दबाव में दिख रहे हैं। यह दबाव पांच राज्यों खास कर पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों की वजह से है तो कोराना वायरस की महामारी में चारों तरफ मचे हाहाकार का भी है। ऊपर से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सकारात्मकता अभियान के दौरान कई ऐसी बातें कहीं, जिससे भाजपा और केंद्र सरकार के ऊपर दबाव बना। उन्होंने लोगों की लापरवाही के साथ साथ शासन और प्रशासन की लापरवाही को भी कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार बताया। संघ प्रमुख ने इशारों-इशारों में इस बात का भी जिक्र कर दिया कि कोरोना की महामारी के बीच भाजपा के नेता कहीं दिखाई नहीं दिए। सांसद और विधायक या पार्टी के पदाधिकारी राजनीतिक कामों को छोड़ कर कहीं सामाजिक गतिविधियों में नहीं दिखे। ध्यान रहे संघ प्रमुख से पहले दिल्ली में आरएसएस से जुड़े राजीव तुली ने यह मामला उठाया और कहा था कि दिल्ली के सातों सांसद और पार्टी के विधायक कोरोना वायरस की महामारी में नदारद रहे। संघ प्रमुख ने आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने सौ साल पहले 1918-20 में आए प्लेग की महामारी के… Continue reading दबाव में बदल रही है भाजपा

संघ-परिवार का उतरता रंग

इन दिनों संघ-परिवार पर हैरत बढ़ गई है। विशेषकर, शाहीनबाग पर सड़क कब्जा, जामिया-मिलिया से लेकर कई जगहों पर दिल्ली पुलिस पर हमले, लाल किला पर देश-विरोधी उपद्रव, और अब बंगाल में भाजपा समर्थकों का चुन-चुन कर मारा जाना, उन से लाखों रूपए की ‘जजिया’ वसूली, कुछ इलाकों को हिन्दुओं से खाली करा लेने, आदि पर संघ-भाजपा की निष्क्रियता ने सब को चकित कर दिया है। हालाँकि, यह सब पहली बार नहीं हो रहा। हिन्दू समाज की अनदेखी, बढ़-चढ़कर मुस्लिम-तुष्टीकरण, और चर्च-तुष्टिकरण के लिए वाजपेई सरकार की भी खिंचाई हुई थी। हज सबसिडी की रकम स्वतः बढ़ाने, और ‘दो करोड़ उर्दू शिक्षकों’ को नौकरी देने, आदि बयानों के बाद वाजपेई को ‘हाजपेई’ कहा गया था। परन्तु इस बार स्वयं रा.स्व.संघ के लोग भी सत्ता भोग रहे हैं। प्रधानमंत्री वाजपेई ने इन्हें सत्ता से दूर ही नहीं रखा, बल्कि उन की पूरी अनदेखी की थी। स्वयं संघ-प्रमुख कुप्प सुदर्शन ने शेखर गुप्ता के साथ टीवी इंटरव्यू में वाजपेई-अडवाणी की कड़ी आलोचना की थी। उस का पूरा पाठ इंटरनेट पर उपलब्ध है, जिसे पढ़ना चाहिए। दूसरा फर्क कि स्थिति और गंभीर हो चुकी है। पर संघ-भाजपा नेतृत्व नीरो की तरह वंशी बजाते हुए सब को उपदेश दे रहे हैं। मानो उपदेश देने… Continue reading संघ-परिवार का उतरता रंग

संघ-वीएचपी वालों शर्म करो! अरबों रुपए के चंदे में कुछ तो हिंदुओं को सांस देने पर खर्च करो!

मैं हिंदू हूं। सनातनी सत्व-तत्व की जीवन आस्थाएं लिए हुए हूं और हिंदू होने के गर्व में जीवन जीया है। लेकिन अब मैं सोचने को विवश हूं कि कैसे हम हिंदू, कैसा हिंदू काल, जिसमें हिंदू प्राणी की सांस पर भी वे लोग, वे संगठन, वे धर्म गुरू, संरक्षक जन जानवर की तरह ठूंठ हैं, जिन्होंने हिंदू नाम पर अरबों रुपए इकठ्ठे किए, दुकानें चलाईं, सत्ता-मुनाफा कमाया लेकिन इतने भी मानवीय नहीं जो मरते-तड़पते हिंदुओं के लिए ‘सांस लंगर’ लगाते!जो श्मशानों में हिंदू जन के अंतिम संस्कार करवा देते, जिससे परिवार सदस्य इस सुकून से लौटें कि मतृक आत्मा की संस्कारगत अंतिम यात्रा हुई। पंडित ने मृतक का नाम ले कर संस्कार किया, कपाल क्रिया से मुक्ति हुई! क्या हिंदू के लिए इतना भी सोचनाउस संघ-उस विश्व हिंदू परिषद्, उस रामदेव, उस रविशंकर, उस जग्गी वासुदेव, उन शंकाराचार्यों, महामंडलेश्वरों की बुद्धि, मानवता में नहीं, जो मोदी के हिंदू काल में वैभव को प्राप्त हैं, जिन्होंने हर तरह का धंधा किया, पैसा-मुनाफा-चंदा कमाया। ये पैसे का क्या दस-बीस-पच्चीस प्रतिशत हिस्सा निकाल कर उससे मौत काल में हिंदुओं को ऑक्सीजन नहीं दिलवा सकते? हिंदू को गरिमापूर्ण अंतिम यात्रा नहीं करवा सकते? हां, पिछले एक साल में संघ-विश्व हिंदू परिषद् ने पूरे देश… Continue reading संघ-वीएचपी वालों शर्म करो! अरबों रुपए के चंदे में कुछ तो हिंदुओं को सांस देने पर खर्च करो!

परंपरा – कर्मकांड किसकी ? राष्ट्र की या धर्म की…?

क्या ऋषिकेश की गंगा को कानपुर की मैली गंगा में भी शुद्ध रखा जा सकता हैं ? वर्षों से केंद्र की काँग्रेस और अब मोदी सरकार कोशिश करती रही हैं, पर परिणाम वही “ढाक के तीन पात” रहे।

संघ से नए लोग जाएंगे भाजपा में

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपनी टीम में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कुछ और लोगों को शामिल करने का रास्ता बना लिया है। संघ के प्रवक्ता रहे और पार्टी में महासचिव की जिम्मेदारी निभा चुके राम माधव को राष्ट्रीय टीम में नहीं लिए जाने के बाद माना जा रहा था कि नड्डा की टीम में संघ के लोग कम होंगे।

मोहन भागवत के विचारों पर एक स्वयंसेवक

Thoughts of Mohan Bhagwat : प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने दशहरा उत्सव के उपलक्ष्य में ..

क्या आर.एस.एस. हिन्दू धर्म से दूर हो रहा है?

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि धर्म के बारे में अंतिम बात कही जा चुकी है। सभी अन्य मनीषियों ने भी धर्म को केवल विभिन्न रूपों में समझाने का ही कार्य किया। किसी ने उसे सुधारने या बदलने की आवश्यकता नहीं बताई।

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