संघ परिवार
मौलाना वहीदुद्दीन जमाते इस्लामी के नेता और तबलीगी जमात के सिद्धांतकार थे। अपनी पुस्तक ‘तबलीगी मूवमेंट’ में उन्होंने गदगद होकर तबलीग का इतिहास लिखा है, जो भारत से हिन्दू धर्म-परंपरा का चिन्ह तक मिटा देना चाहता है। तबलीग की शुरुआत (1926 ई.) भारतीय मुसलमानों पर ‘बुरा प्रभाव’ देख कर हुई थी। वहीदुद्दीन ने दुःखपूर्वक नोट किया है कि अधिकांश मुसलमान सदियों बाद भी हिन्दू जैसे ही थे। वे गोमांस नहीं खाते; चचेरी बहनों से शादी नहीं करते; हिन्दू पर्व-त्योहार मनाते; धोती, कड़ा-कुंडल पहनते थे, आदि। इस का उपाय हुआ – उन में अलगाव भरना। जिस की तारीफ करते वहीदुद्दीन ने लिखा कि कुछ दिन इस्लामी प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षु मुसलमानों को ‘नया मनुष्य’ बना दिया गया! यानी मुसलमानों की दिमागी धुलाई कर, अपनी सांस्कृतिक जड़ से उखाड़ कर, हिन्दुओं के प्रति दुरावपूर्ण बनाया गया। खास पोशाक, दाढ़ी, खान-पान, बोल-चाल, आदि द्वारा ‘सुधार’ कर। तबलीग प्रमुख मौलाना इलियास की ताईद करते वहीदुद्दीन: ‘पूरी धरती पर इस्लाम का कब्जा सुधारा हुआ जीवन जीने पर ही निर्भर है। प्रोफेट के नमूने का अनुकरण करो। जो ऐसा नहीं करते और दूसरों को भी करने नहीं कहते, वे अंडे के खोल जैसे अल्लाह द्वारा तोड़ दिए जाएंगे।’ यही तबलीग है, जिस का मुख्य काम मुसलमानों को… Continue reading संघ परिवार और मौलाना वहीदुद्दीन
सीताराम गोयल ने पाया था, ‘‘कि आरएसएस और बीजेएस (भारतीय जनसंघ) के बड़े-बड़े नेता अपना लगभग सारा समय और ऊर्जा यह प्रमाणित करने में खर्च करते थे कि वे हिन्दू संप्रदायवादी नहीं, बल्कि सच्चे सेक्यूलर हैं
और फिर वही दुबारा घटित हुआ। इस बार धक्का उतना तेज और आकस्मिक न था, जितना पिछली बार। फिर भी यह धक्का तो था ही। फर्क यह था कि इस बार इस ने मुझे तोड़ा नहीं, जैसा पिछली बार हुआ था।
इस प्रकार, आरएसएस-बीजेएस पूरी तरह नेहरूवादी विचारों के अनुरूप हो गए और तदनुरूप जनता पार्टी [जिस में बीजेएस ने अपना विलय 1977-1980 के दौरान कर दिया था] में कांग्रेसियों और समाजवादियों से भरपूर नीचा व्यवहार पाया।
संघ परिवार के साथ मेरे अनुभव -3: मैं बड़ा प्रसन्न हुआ जब उस आरएसएस नेता ने, जिन से मैं कलकत्ते में मिला था और जो अब संगठन में बड़े ऊँचे पहुँच गए थे, मुझे आर्गेनाइजर में एक लेख-माला में नेहरू के विचार-तंत्र (आइडियोलॉजी) पर लिखने के लिए आमंत्रित किया।
आरएसएस बीजेएस से मेरे संपर्क का एक परिणाम यह हुआ कि जब हम ने अपना कम्युनिस्ट विरोधी कार्य बंद किया, तब 1956-67 के दूसरे आम चुनाव में मुझे मध्य प्रदेश में खजुराहो संसदीय क्षेत्र से बीजेएस के टिकट पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया।
यह अपरिहार्य था कि जैसे-जैसे मैं अधिकाधिक पक्का और सचेत हिन्दू होता गया, मैं आर.एस.एस. और इस के राजनीतिक मंच बी.जे.एस. (भारतीय जनसंघ) की ओर खिंचा। दोनों की छवि ‘हिन्दू सांप्रदायिक संगठन’ होने की थी।
संघ परिवार देश भर में जरूरतमंदों तक भोजन और राहत सामग्री पहुंचा रही है। इसके साथ ही अब संघ ने देश की किल्लत वाले अस्पतालों में पीपीई किट, मॉस्क और सैनिटाइजर भेजना भी शुरू कर दिया है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि अयोध्या मामले में उच्च्चतम न्यायालय के फैसले से यह साफ हो गया है कि इसमें तथ्यों पर आस्था की जीत हुई है।