agyeya

  • जाबी लगे घोड़ों की चारागाह

    अज्ञेय ने डा. लोहिया की के शब्दों में आलोचना की थी, - “लोहिया की ठेठ भाषा में ऐसे बिंब उभारने की शक्ति है, जिन की छाप मन पर बनी रहे; पर तर्क में जब हम बिंबों और प्रतीकों का सहारा अधिक लेने लगते हैं तब सचाई के खो जाने का खतरा रहता है।”... दरअसलहिन्दू नेताओं में अज्ञान, आलस्य, और आडंबर की ऐसी लत लगी हुई है कि वे आँखों के सामने हो रही को भी अनदेखा करते रहते हैं। वे ‘बुरी बातें न देखने’ वाले गाँधीजी के बंदर बनना पसंद करते हैं। ताकि उन की विवेकहीनता, अकर्मण्यता छिपी रहे, और...

  • वात्स्यायन जी (अज्ञेय) और दिल्ली

    कवि अज्ञेय ने अपने अंतिम वर्ष में एक लंबी कविता लिखी थी ‘घर’, जिस में यह पंक्तियाँ भी थीं: ‘‘घर/ मेरा कोई है नहीं/ घर मुझे चाहिए...’’। इस में रूपक और दर्शन, दोनों की अद्भुत प्रस्तुति थी। पर स्थूल रूप से उन के संपूर्ण जीवन पर सरसरी नजर डाल कर दिखता है कि उन का डेरा, या ठौर-ठिकाना सब से अधिक समय और सब से अधिक प्रकार के डेरों में दिल्ली ही रहा। अपने क्रांतिकारी जीवन के आरंभ में, जब वे मात्र उन्नीस वर्ष के थे, तब भी वे दिल्ली में थे, फिर दिल्ली जेल में रहे, और अंततः जीवन...