अरुंधति पर अदालत में क्यों न हो फैसला?
संविधान ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की मर्यादा तय की है। जो संविधान अनुच्छेद 19(1अ) के तहत नागरिकों को ‘बोलने-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ देता है, वही आईन अनुच्छेद 51(अ) के अंतर्गत नागरिकों के कुछ दायित्व भी निर्धारित करता है। पर कोई भी खुद्दार राष्ट्र ऐसे किसी वक्तव्य और कृत्य को कैसे बर्दाश्त कर सकता है, जो उसके वजूद, सार्वभौमिकता और अखंडता को चुनौती दें। हाल में दिल्ली के उप-राज्यपाल ने 2010 संबंधित एक मामले में उपन्यासकार अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी है। सवाल है कि आखिर 14 साल बाद इसकी स्वीकृति क्यों? दरअसल यह काम पहले ही हो...