CAA
गृह मंत्री अमित शाह ने इस कानून को जल्दी लागू करने की बात कही। सरकार घुसपैठियों को बाहर निकालेगी।
अगर भारत में आज भी कानून का राज है, तो क्या गैर कानूनी कार्रवाई का आदेश देने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए? और क्या ऐसी कार्रवाई का शिकार बने लोगों को मुआवजा नहीं मिलना चाहिए?
पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कटौती और विवादित कृषि कानूनों की वापसी के बाद कुछ लोग बेवजह यह उम्मीद पाल रहे हैं कि सरकार जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का फैसला पर पलट सकती है।
साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि किसानों के लिए इतना मजबूत आंदोलन चलाने का तरीका सीएए के खिलाफ आंदोलन में मिला।
भाजपा, सपा ,बसपा और यहां तक की उत्तर प्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ने जा रहे हो ओवैसी भी हरकत में आ गए हैं. ऐसे में तीन दशकों से यूपी की सत्ता से दूर होने वाली कांग्रेस…
Modi government agriculture law : लगातार दूसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद सोचें, उन्होंने कितने नए एजेंडे बनाए थे और कितने नए मोर्चे खोले थे। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि पांच साल तक सरकार चलाने के बाद अगर सरकार ने कुछ एजेंडा बनाया और संसद से उसे मंजूरी कराई है तो निश्चित रूप से सरकार के पास कोई कार्य योजना भी होगी। लेकिन अफसोस की बात है कि जो एजेंडा सरकार ने बनाया और जिस पर जोर-जबरदस्ती संसद की मुहर लगवाई वैसे एजेंडे भी दो साल से अटके हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार के पास उस पर अमल की कोई कार्य योजना नहीं थी या सरकार ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि इसे लागू करते समय किस किस तरह की समस्याएं आ सकती हैं। यह भी पढ़ें: समस्याएं सुलझ नहीं, बढ़ रही हैं! ऐसा सबसे पहला मुद्दा कृषि कानूनों ( Modi government agriculture law ) का है। कोरोना वायरस की महामारी के बीच केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए तीन कृषि कानून बनाए, जिनको संसद से लगभग जबरदस्ती पास कराया गया। राज्यसभा में इन कानूनों का भारी विरोध हुआ। विपक्ष के सांसद इन पर वोटिंग की मांग करते रहे पर इस अनिवार्य… Continue reading अपने बनाए एजेंडे भी अटके!
संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए संसद से पास होकर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन चुका है। लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इस कानून के नियम नहीं अधिसूचित किए हैं इसलिए यह कानून लागू नहीं हो रहा है। इस कानून के तहत केंद्र सरकार ने यह प्रावधान किया है कि तीन पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले वहां के अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता दी जाएगी। यह भी पढ़ें: पंजाब में क्या कैप्टेन समझेंगे? असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में इस कानून का बहुत विरोध हो रहा है क्योंकि वहां के स्थानीय लोगों को लग रहा है कि इससे उनके राज्य की जनसंख्या संरचना बदल जाएगी। चूंकि इस साल असम में चुनाव होना था इसलिए भाजपा ने कानून को रोके रखा। यह भी पढ़ें: केरल कांग्रेस का मामला, उलझा अब पिछले दरवाजे से सरकार इस कानून को पूर्वोत्तर की बजाय पांच दूसरे राज्यों में लागू करने की जा रही है। गृह मंत्रालय ने निर्देश जारी किया है कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और पंजाब के 13 जिलों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों से नागरिकता के लिए आवेदन लिया और उसकी जांच… Continue reading सीएए के नियम क्यों नहीं बना रही सरकार?
सन् 2019-20 के दो वर्षों की तुलना वाले वर्ष भारत के इतिहास में ढूंढे नहीं मिलेंगे। पहला तथ्य कि ये दो वर्ष जनता द्वारा छप्पर फाड़ जिताने के तुरंत बाद के हैं।
दूसरे कार्यकाल के दो साल पूरे होते-होते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वहीं स्थिति है, जो 2014 से पहले तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हो गई थी। वे अपने आखिरी तीन साल प्रधानमंत्री रहे यानी गद्दी पर बैठे रहे लेकिन शासन नहीं कर पाए। उन्होंने अगले तीन साल सिर्फ घटनाओं पर प्रतिक्रिया दी। हवा के साथ बहते रहे और अंत नतीजा कांग्रेस की ऐतिहासिक पराजय का निकला। यह भी पढ़ें: भारतः ये दो साल! नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा भी उसी नतीजे पर पहुंचेगी यह अभी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि मनमोहन सिंह के मुकाबले मोदी प्रो एक्टिव होकर स्थितियों को संभालने का प्रयास करेंगे। परंतु मोदी सरकार का घटनाओं पर अब नियंत्रण नहीं है। इकबाल भी धीरे धीरे खत्म हो रहा है। सरकार की साख और विश्वसनीयता सात साल में सबसे निचले स्तर पर है। पहली बार ऐसा हुआ है कि उनके समर्थकों के मन में भी अविश्वास पैदा है। कोराना वायरस का संक्रमण शुरू होने से पहले सब कुछ मोदी के कंट्रोल में दिख रहा था। लेकिन पहले संकट ने ही सब कुछ संभाल लेने की उनकी क्षमता पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया। वे कोरोना संकट को नहीं संभाल सके, देश का आर्थिक संकट उनके… Continue reading गद्दी पर रहेंगे, शासन क्या करेंगे!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके गृह मंत्री अमित शाह को दूसरे कार्यकाल के दो बरस में जितना राजनीतिक नुकसान हुआ है उतना उनके पूरे राजनीतिक करियर में नहीं हुआ होगा। भाजपा ने पिछले दो साल में अपने कई राजनीतिक सहयोगी गंवा दिए। महाराष्ट्र में दशकों से भाजपा की सहयोगी रही शिव सेना ने उसका साथ छोड़ दिया। शिव सेना की तरह ही सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक अकाली दल ने कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ दिया। महाराष्ट्र में राजू शेट्टी, बिहार में उपेंद्र कुशवाहा, असम में हाग्राम मोहिलारी जैसे अनेक छोटे छोटे क्षत्रपों ने भाजपा का साथ छोड़ दिया। हो सकता है कि भाजपा को अभी इसके नुकसान का अंदाजा नहीं हो रहा हो पर आने वाले दिनों में सहयोगियों की कमी उसे परेशान करेगी। यह भी पढ़ें: भारतः ये दो साल! लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अगस्त के महीने में अनुच्छेद 370 का फैसला कराने और नागरिकता कानून बदलवाने के बाद लग रहा था कि अब आगे कोई भी चुनाव जीतने से भाजपा को कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन इन दोनों फैसलों के बाद दो राज्यों- महाराष्ट्र व हरियाणा में में विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा ने महाराष्ट्र की सत्ता… Continue reading राजनीतिक नुकसान के दो बरस
असफलताओं को महान बताना एक किस्म का विशेषण विपर्यय है, लेकिन यह जरूरी है क्योंकि इन दो सालों की असफलताएं इतनी बड़ी हैं कि कोई दूसरा विशेषण उसके साथ न्याय नहीं कर सकता। ये असफलताएं हर किस्म की हैं। यह भी पढ़ें: आंसुओं को संभालिए साहेब! यह भी पढ़ें: कमान हाथ में लेने की नाकाम कोशिश! वैसे तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने सात साल हो गए हैं। लेकिन सिर्फ दो साल का आकलन इसलिए क्योंकि पहले पांच साल के उनके कामकाज पर देश की जनता ने अपनी सहमति दी है। उन्हें पहले से ज्यादा वोट और ज्यादा सीटें देकर फिर से सत्ता सौंपी। नोटबंदी और जीएसटी जैसी महान भूलों को जनता ने क्षमा किया या स्वीकार करके आगे बढ़ने का निश्चय किया। उन पांच सालों की बातें भले इतिहास में जिस रूप में दर्ज हुई हों पर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में उसे एक सफलता के तौर पर देखा जाएगा। उसकी सफलता थी, जो नरेंद्र मोदी ज्यादा बड़े बहुमत के साथ 30 मई 2019 को फिर से देश के प्रधानमंत्री बने। आजाद भारत के इतिहास में वे तीसरे नेता हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करके लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। अगले हफ्ते उनके… Continue reading महान असफलताओं के दो साल!
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर पहुंच चुका है। कांग्रेस, तृणमूल सहित कई स्वघोषित सेकुलरिस्ट अपने प्रचार में पुन: “लोकतंत्र-संविधान खतरे में है” जैसे जुमलों का उपयोग करके सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा कर रहे है। इस बार इन दलों ने इसके लिए उन विदेशी संगठनों की रिपोर्ट को आधार बनाया है, जिसमें भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप के तथाकथित रूप से क्षीण होने और देश में निरंकुशता बढ़ने की बात कही गई है। इन्हीं संगठनों में से एक “फ्रीडम हाउस”, तो दूसरी “वी-डैम” है। निर्विवाद सत्य है कि हमारा देश 800 वर्षों के परतंत्र कालखंड के बाद स्वयं को उभारने हेतु प्रयासरत है और इस दिशा में ऐतिहासिक भूलों को सुधारते हुए अभी बहुत कुछ करना शेष है। हाल के वर्षों में भारत में हो रहे सकारात्मक परिवर्तन को शेष विश्व अनुभव भी कर रहा है। स्वदेशी कोविड-19 टीका संबंधी भारत का “वैक्सीन मैत्री अभियान”- इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। एक अकाट्य सत्य यह भी है कि भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान के कारण हजारों वर्षों से पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक बना हुआ है। वह ऐसा केवल भारतीय संविधान में “सेकुलर” शब्द जोड़ने या अन्य किसी प्रावधान के… Continue reading भारत खिलाफ प्रचार और हथियार
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने असम में वादा किया है कि राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो सभी परिवारों को दो सौ यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जाएगी।
एक तरफ ये पार्टियां हैं, जो सीएए को मुद्दा बनाए रखना चाहती हैं तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी है, जो सीएए लेकर आई है लेकिन उसे मुद्दा नहीं बनने देना चाहती है क्योंकि इससे उसे नुकसान का अंदेशा है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने असम में पार्टी के प्रदेश ईकाई के हिसाब से नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर बयान दिया है।