Climate Change
यूरोप गर्म होती दुनिया की लाइव तस्वीर पेश कर रहा है और बता रहा है कि अच्छी तरह तैयार समाज भी मौसमी अति की घटनाओं से सुरक्षित नहीं हैं।
वैज्ञानिक दशकों से चेतावनी दे रहे हैं कि सरकारों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने रणनीति नहीं बनाई, तो ये समस्याएं बढ़ती जाएंगी।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की इस राय से सहज ही सहमत हुआ जा सकता है कि उनके देश पर जलवायु परिवर्तन की मार पड़ी है।
यह बात तो अब दुनिया भर में कही जाने लगी है कि जलवायु परिवर्तन कोई भविष्य में आने वाला संकट नहीं है। बल्कि इसे हम अपने वर्तमान में होता देख रहे हैं।
डेढ़ डिग्री तक की वृद्धि से आठ प्रतिशत पौधे अपनी आधी से ज्यादा किस्में खो देंगे।
अगर कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया गया, तो जल्द ही भारत रहने लायक ही नहीं रह जाएगा।
दुनिया भर के देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की कसमें खाते हैं लेकिन कम होने की बजाय कार्बन उत्सर्जन में 14 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है।
सूखा, बाढ़, अत्यधिक गर्मी और सर्दी जैसी आपदाओं की संख्या बढ़ी है। लेकिन सर्वे में शामिल दो तिहाई लोगों ने यही कहा कि यह सब ईश्वर की कृपा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी और भी बहुत कुछ होना बाकी है और इससे भी बदतर। क्योंकि पृथ्वी का वातावरण अगले दशक और उसके बाद भी गर्म होता जा रहा है।
अब यही न्यू नॉर्मल है। हम जलवायु परिवर्तन के जो असर को देख रहे हैं, जो हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा संकट है। लेकिन क्या इस बात से अमेरिकी राजनेता, खास कर रिपब्लिकन पार्टी सबक लेगी।
पृथ्वी मुश्किल में है और भविष्य धूमिल क्योंकि हर साल सबसे गर्म वर्ष हो रहा है और हर साल सबसे ठंडा वर्ष भी होता जा रहा है।.
दुनिया की सबसे धनी एक फीसदी आबादी बाकी पूरी आबादी की तुलना में 30 गुना ज्यादा उत्सर्जन कर रही है।
लोग जलवायु परिवर्तन, आपदाओं-बीमारियों में मर रहे हैं, बरबाद हो रहे हैं लेकिन न खबर लेने और देने वाले और न ही घटनाओं की अखबार-टीवी चैनलों पर पहली खबर!
डेंगू के मच्छर का खतरा है तो सड़क के ट्रैफिक की अनियंत्रित-अराजक भीड़ में दर्दनाक मौतों की घटनाओं की दहशत भी है।
जलवायु परिवर्तन की चिंता पिछले 50 साल की परिघटना है। उससे पहले किसी को इसकी चिंता नहीं थी लेकिन भारत तब भी इसकी मार झेलते हुए था और आज भी है।