सामाजिक समरसता के प्रतिबिंब है श्रीराम
भारतीय वांग्मयों की मार्क्स-मैकॉले मानसपुत्रों (द्रविड़ आंदोलनकारियों सहित) ने अपने कुटिल एजेंडे के अनुरूप विवेचना की है। उनका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को मिटाना नहीं, अपितु उनका उपयोग करके 'असंतोष' का निर्माण करना है। ऐसे ही कई मिथकों से वर्ग-संघर्ष अर्थात् हिंसा को जन्म दिया गया है। रामायण, महाभारत इत्यादि के साथ भी इस कुनबे ने यही किया है। श्रीराम का जन्म किसी दलित की हत्या करने हेतु नहीं हुआ। उनका अवतरण रावण के रूप अन्याय, अनाचार और अहंकार को समाप्त करने हेतु था। सुधी पाठकों को दीपावली की बधाई। प्राचीनकाल से इस पर्व का संबंध मां लक्ष्मी पूजन के साथ...