डॉ हेडगेवार और रा. स्व. संघ: कहाँ से चले, और कहाँ पहुँचे? (3)
हेडगेवार की इस आधिकारिक जीवनी से गत नौ दशकों के अनुभवों का मिलान करके एक संक्षिप्त निष्कर्ष तो मिलता ही है: नौ दिन चले, अढ़ाई कोस!...आज विशाल, सत्ताधारी, संपन्न, साधनवान संगठन बन जाने के बाद, उस आक्रामक समूह से लड़ना तो दूर, संघ के विविध नेता उस की ठकुरसुहाती, सिरोपा करते, उन के लिए संस्थान-इमारतें बनवाते और भरपूर अनुदान, और ‘पेंशन’ तक दे रहे है! संघ-परिवार के नेता देशी-विदेशी मुस्लिम नेताओं को खुश करने की खुली चिन्ता दिखाते हैं, और चिंतित हिन्दुओं को फटकारते हैं। इस तरह, संघ से हिन्दू समाज का आशावान बने रहना घातक सिद्ध होता रहा, और...