Dr Hedgewar

  • डॉ हेडगेवार और रा. स्व. संघ: कहाँ से चले, और कहाँ पहुँचे? (3)

    हेडगेवार की इस आधिकारिक जीवनी से गत नौ दशकों के अनुभवों का मिलान करके एक संक्षिप्त निष्कर्ष तो मिलता ही है: नौ दिन चले, अढ़ाई कोस!...आज विशाल, सत्ताधारी, संपन्न, साधनवान संगठन बन जाने के बाद, उस आक्रामक समूह से लड़ना तो दूर, संघ के विविध नेता उस की ठकुरसुहाती, सिरोपा करते, उन के लिए संस्थान-इमारतें बनवाते और भरपूर अनुदान, और ‘पेंशन’ तक दे रहे है! संघ-परिवार के नेता देशी-विदेशी मुस्लिम नेताओं को खुश करने की खुली चिन्ता दिखाते हैं, और चिंतित हिन्दुओं को फटकारते हैं। इस तरह, संघ से हिन्दू समाज का आशावान बने रहना घातक सिद्ध होता रहा, और...

  • डॉ हेडगेवार और रा. स्व. संघ: कहाँ से चले, और कहाँ पहुँचे? (2)

    चाहे आज पूरे देश पर उन के स्वयंसेवकों की सत्ता क्यों न हो! पर वे आज भी मानो बचकर, छिपकर, अंतर्विरोधी, दोमुँही बातें बोलकर ही सब कुछ करते हैं।..अंदर कुछ, बाहर कुछ, तथा कुछ छिपा कर, अधूरी बात बताकर काम करना और लेना मानो उन का स्वभाव बन चुका है। ...उन के नेता, केवल चलते-चलाते जुमले बोलकर निकल जाते हैं, ‘अब समय बदल गया है’ या ‘यह/वह संभव नहीं है’, आदि।...वीर सावरकर ने इस सबको समझ कहा था कि किसी स्वयंसेवक की समाधि पर एक ही अभिलेख होगा: “उस ने जन्म लिया; वह आर.एस.एस. में आया; वह मर गया।”...संघ के...

  • डॉ हेडगेवार और रा. स्व. संघ: कहाँ से चले, और कहाँ पहुँचे?

    डॉ. हेडगेवार ने, जाने-अनजाने, इस भ्रम का निराकरण नहीं किया कि संघ अपने आरंभिक कार्य - हिन्दू समाज के शत्रुओं से सीधे लड़ना - छोड़ चुका है। जबकि उसी आरंभिक छवि के कारण संघ के फैलते चले जाने से डॉ. हेडगेवार को अपने ‘संघ-कार्य’ के प्रति बदगुमानी भी हो गई। वे संघ विस्तार को स्वयंसेवकों की संघ-निष्ठा का परिणाम मानते थे। जबकि वस्तुतः सामान्य सचेत हिन्दू और कांग्रेसी, हिन्दू महासभाई, तथा गैर-राजनीतिक बड़े हिन्दू, जैसे राजा लक्ष्मण राव, कृष्णवल्लभ नारायण सिंह (बबुआ जी), आदि एवं कुछ हिन्दू साधु-संत भी संघ को अपने प्रत्यक्ष लड़ाके के रूप में सहयोग दे रहे...