जाबी लगे घोड़ों की चारागाह
अज्ञेय ने डा. लोहिया की के शब्दों में आलोचना की थी, - “लोहिया की ठेठ भाषा में ऐसे बिंब उभारने की शक्ति है, जिन की छाप मन पर बनी रहे; पर तर्क में जब हम बिंबों और प्रतीकों का सहारा अधिक लेने लगते हैं तब सचाई के खो जाने का खतरा रहता है।”... दरअसलहिन्दू नेताओं में अज्ञान, आलस्य, और आडंबर की ऐसी लत लगी हुई है कि वे आँखों के सामने हो रही को भी अनदेखा करते रहते हैं। वे ‘बुरी बातें न देखने’ वाले गाँधीजी के बंदर बनना पसंद करते हैं। ताकि उन की विवेकहीनता, अकर्मण्यता छिपी रहे, और...