राज्य और पार्टी का घालमेल रोकें-2
भारतीय दलों ने ऐसे अघोषित अधिकार ले लिये हैं, जो यूरोप, अमेरिका में कोई सोच भी नहीं सकता। एक ओर यहाँ किसी के बैंक-खाते में भी बड़ी रकम आने पर देखने की व्यवस्था है। तब यह कैसा मजाक कि राजनीतिक पार्टियाँ द्वारा सैकड़ों करोड़ लेन-देन की कोई हिसाबदारी न हो! स्थानीय से ऊपर तक के चुनावों में एक-एक सीट पर कई पार्टियाँ जो खर्चती हैं, उस से एक ही चुनाव में सैकड़ों करोड़ रूपये लगाती हैं। वह धन कहाँ से आया, क्या यह संवैधानिक संस्थाओं को भी जानने की जरूरत नहीं? एक ओर लघुतम दुकानदार या क्लर्क से भी आमदनी...