प्रजातंत्र के तीनों अंग विलुप्ति के कगार पर…?
यदि हम प्रजातंत्र के तीनों अंगों के परिपेक्ष में हमारे मौजूदा देश का ईमानदारी से विश्लेषण करें तो हमें ना तो यहां प्रजा स्वतंत्र दिखाई दे रही है और ना तंत्र। मुट्ठी भर राजनेताओं ने इस देश को अपने कब्जे में कर रखा है, जिनकी लोकतंत्र या प्रजातंत्र के प्रति कोई आस्था नहीं है, आज प्रजातंत्र के तीनों अंग अपनी-अपनी ढपली पर अपने-अपने राग अलाप रहे हैं और इनमें से दो अंगों कार्यपालिका और न्यायपालिका पर विधायिका अपना वर्चस्व स्थापित कर अपने कब्जे में रखना चाहती है, कार्यपालिका तो वैसे ही विधायिका के नियंत्रण में है और अब न्यायपालिका पर...