former protest
एक तरफ अपने खून-पसीने से धरती का सीना चीर कर अनाज उपजाने वाले खुद्दार और मेहनतकश किसान हैं तो दूसरी ओर बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास ‘चंद्रकांता संतति’ के अय्यारों की तरह की सरकार है।
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है। दिल्ली की सीमा पर जहां-जहां किसान आंदोलन कर रहे हैं वहां 11-11 किसानों की टीम भूख हड़ताल पर बैठी।
इस पृथ्वी पर भारत वह दास्तां है, जहां लोग लूट, गुलामी में होते हुए भी उसकी सुध में जीते हुए नहीं हैं। वजह गुलामी-लूट के चौदह सौ साल के झटकों से बनी ब्रेन डेड याकि मृत मष्तिष्क अवस्था है।
सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन खत्म कराने की पहल करते हुए मध्यस्थ की भूमिका अपना ली है। ये हैरतअंगेज है। अधिकारों के अलगाव पर आधारित किसी संवैधानिक व्यवस्था में कोर्ट ऑफ जस्टिस और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में फर्क होता है।
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने अगले रविवार को रेडियो पर प्रसारित होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के विरोध का ऐलान किया है।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में पारा तीन डिग्री तक गिर जाने के बावजूद दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर खुले आसमान के नीचे 24 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने कहा है कि जब तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है वे अपने घर वापस नहीं लौटने वाले हैं।
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के 24 दिन हो गए हैं। एक तरफ केंद्र सरकार उनसे कह रही है कि बातचीत से समाधान निकालना है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री लगभग रोज इन कानूनों के फायदे समझा रहे हैं।
यही केंद्र सरकार का फिलहाल नंबर एक मिशन है लेकिन बिना कृषि बिल को वापिस लिए या रद्द किए। सरकार को 20 जनवरी तक हर हाल में दिल्ली-हरियाणा सीमा से किसानों की भीड़ खत्म करानी है।
हां, पंजाब के सिक्ख किसानों का इन शहीदी महिना है। इसी महिने सिक्खों के दसवें गुरू के दो बेटे दिल्ली दरबार के औरंगजेब से लड़ते हुए शहीद हुए थे और दो बेटे सरहिंद में दीवाल में चीने गए।
प्रचार हो रहा है कि ये कैसे किसान हैं, जो जिंस की पैंट-जैकेट पहनते हैं, पिज्जा खाते हैं, मसाज कराते हैं, बड़ी गाड़ियों से आते हैं और ट्रैक्टर पर डीजे बजा कर डांस करते हैं।
यह यक्ष प्रश्न की तरह है कि आखिर इतना लंबा चलने वाला, इतना बड़ा और प्रभावी किसान आंदोलन कैसे संचालित हो रहा है
क्या भारत की सर्वशक्तिमान सरकार और उसके मुखिया किसान आंदोलन के सामने मजबूर हो गए हैं
कैंद्र सरकार के बनाए तीन कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर पिछले 23 दिन से आंदोलन कर रहे किसान चाहते हैं कि उनकी मांगों को समझने और उसे पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीधे उनसे बात करें
अहम फर्क यह कि ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक गोरे अंग्रेज थे तो अंबानी-अडानी हिंदुस्तानी अश्वेत चेहरों वाले हैं। अन्यथा दोनों धंधे-मुनाफे के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाले।
केंद्र सरकार के बनाए तीन केंद्रीय कानूनों के विरोध में लाखों किसान कड़ाके की ठंड के बीच राजधानी दिल्ली की सीमा पर डटे हैं तो उनके समर्थन में देश भर के किसान अपने अपने राज्यों में प्रदर्शन कर रहे हैं।