Harishankar vyas

  • भीड़ में खोई जिंदगी!

    मैं पंद्रह-बीस दिन भीड़ में खोया रहा। दिल्ली की भीड़, ट्रेन की भीड़, शादी की भीड़, एयरपोर्ट की भीड़! और ठंड-ठिठुरन, प्रदूषण, बदबू, बदहजमी, धुंध में ऐसा फंसा कि समझ नहीं आया कि करें तो क्या करें! लिखें तो क्या लिखें! कुछ वर्षों से मैं दीपावली के बाद, सर्दियों में दिल्ली से दूर राजस्थान में रहता हूं। लेकिन इस वर्ष दिल्ली में अभिन्न परिवारों से शादियों के न्योते थे तो दिल्ली आना पड़ा। और ठंड, भीड़, प्रदूषण से बच नहीं पाया। बुखार, वायरल, खांसी से दिमाग झनझनाया। और सवाल बना कि हम हो क्या गए हैं? सही है शुरू से...