Holoktsav

  • होलकोत्सवः सभी के कल्याण की भावना

    वैदिक नवसस्येष्टि का प्रचलित नाम होली पड़ने का कारण यह है कि इस अवसर पर अर्थात फाल्गुन पूर्णिमा तक चना, गेहूँ, यव आदि अन्न अर्द्ध परिपक्व अवस्था में होता है, और उसकी बालों, टहनियों को जब आग में भुनते हैं, तो उसकी संज्ञा लोक में होला होती है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार जो अर्धपका अन्न आग में भूना जाता है, उसे संस्कृत में होलक कहते हैं और यही होलक शब्द हिन्दी भाषा में होला कहलाने लगा। तिनकों की अग्नि में भुने हुए अधपके शमीधान्य अर्थात फली वाले अन्न को होलक या होला कहते हैं। वसंत पंचमी के ठीक चालीस दिन...