मटमैले पहाड़ों से रिसता दर्दीला सौंदर्य
मैंने इस महीने का दूसरा सप्ताह लद्दाख में गुज़ारा। लद्दाख मैं कई बार गया हूं। मगर इस बार के लद्दाख ने मुझे नया नज़रिया दिया। लद्दाख के दिन इन दिनों गुनगुने हैं। लद्दाख की रातें अभी बर्फ़ीली नहीं वासंती हैं। लेकिन इस गुनगुनाहट और वासंतीपन के होते हुए भी लद्दाख उदास दिखाई देता है। स्पंदन नहीं है। यांत्रिक लगता है। लोगों के भीतर दिल धड़क रहे हैं। लोग गर्माहट से भरे लगते हैं। लेकिन मुझे दिल की यह धड़कन ‘पेसमेकरी’ लगी और लोगों में गर्माहट ओढ़ी हुई नज़र आई। भीतर से वे सब ग़मगीन न भी कहूं तो ‘जाहि विध...