रामदेव का क्या से क्या होना!
साधु सन्यासियों को राजनीति से दूर इसलिए रहना चाहिए क्योंकि राजनीति वह काल कोठरी है जिसमें, ‘कैसो ही सयानों जाए - काजल का दाग भाई लागे रे लागे’ नियति है। बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन की शुरुआत भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध की थी लेकिन वे एक ही राजनैतिक दल से जुड़ कर अपनी निष्पक्षता खो बैठे है। इसलिए भी वे आलोचना के शिकार बने है। सन् 1989 में जब मैंने वीडियो समाचार कैसेट ‘कालचक्र’ जारी की तो उसमें एक स्लॉट भ्रामक विज्ञापनों को कटघरे में खड़े करने वाला था। उस दौर में इन कमर्शियल विज्ञापनों की विश्वसनीयता पर...