क्या संसद सड़क छाप नहीं?
स्वभाविक है जो 2024 के आम चुनाव की नजदिकी में संसद की कार्रवाई चुनावी राजनीति लिए हुए हो। लोकसभा का अविश्वास प्रस्ताव उसमें ढला-बना हो। तभी विपक्ष ने मणिपुर की वीभत्सता में अविश्वास प्रस्ताव ला कर चुनाव पूर्व का पेंतरा चला। इसे समझते हुएप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कमर कसी। भाषण तैयार किया। ऐसा आजाद भारत में पहले भी हुआ है। और यह संसदीय राजनीति में मान्य है। लेकिन यह मान्य नहीं है कि इस चक्कर में ससंद की गरिमा को ताक में रख दें। उसे सब्जीबाजार बना दे। संसदीय बहस चुनाव की सड़क छाप भौ-भौ में कनवर्ट हो जाए।...