‘ध्यान’ की पंचवर्षीय योजना का उपसंहार
‘ध्यान’ अगर ‘ध्यान’ है तो उसे मतदान के अंतिम चरण की पूर्व संध्या से शुरू कर मतदान ख़त्म होने पर ख़त्म करना ही क्यों ज़रूरी है? ध्यान अगर ‘ध्यान’ पर है और चुनाव पर नहीं तो फिर तो ‘ध्यान’ कभी भी, कहीं भी, किया जा सकता है। उस के लिए विवेकानंद शिला की ही क्यों ज़रूरत है, उस के जीवंत प्रसारण की क्यों ज़रूरत है, उसे मंचीय स्वरूप देने की क्यों ज़रूरत है? पांच बरस पहले केदारनाथ की गुफ़ा में बैठ कर भी अपने ‘ध्यान’ का जीवंत प्रसारण नरेंद्र भाई ने कराया था। .. नरेंद्र भाई के ‘ध्यान’ की यह...