जब बात बिगड़ती है
स्वतंत्रता दिवस पवित्र मौका है। लेकिन इस दिन राजनीतिक विमर्श के गिरते स्तर की मिसालें खूब देखने को मिलीं। लाल किले से प्रधानमंत्री ने राष्ट्र नेता के बजाय अपनी पार्टी के नेता के रूप में देश को संबोधित किया, तो विपक्ष ने उन पर बदनीयती का आरोप मढ़ दिया। राजनीतिक संवाद अगर देश के प्रति एक दूसरे की निष्ठा पर संदेह जताने और बदजुबानी तक पहुंच जाए, तो उसे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी माना जाना चाहिए। दुर्भाग्य से भारत में अब बात इसी मुकाम पर पहुंचती नजर आ रही है। एक समय था, जब प्रधानमंत्री पूरे राष्ट्र की...