हे मंगलमूर्ति! इन को भी क्षमा करना, उन को भी
गणपति तो विध्नहर्ता हैं। कोई बुद्धिहर्ता और विवेकहर्ता तो हैं नहीं। इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि भारत के प्रधान न्यायाधीश महोदय को यह बुद्धि-विवेक कहां से मिला कि वे भारत के प्रधानमंत्री जी को अपने यहां गणेश-आरती करने के लिए निमंत्रित करें? मुझे यह भी नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री जी पर इस विवेक-बुद्धि का अवतरण कहां से हुआ कि वे बाक़ायदा महाराष्ट्रीय परिधान धारण कर, सिर पर टोपी लगा कर, आरती के निजी आयोजन में शिरकत करने पहुंच गए? मुझे यह भी नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री जी निमंत्रण मिलने पर प्रधान न्यायाधीश जी के घर गए या...