political parties

  • एक साथ चुनाव से पहले सुधार जरूरी

    पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की योजना पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार कर रही है और कहा जा रहा है कि जल्दी ही इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी। इसकी मसौदा रिपोर्ट को लेकर मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक कमेटी ‘एक देश, एक चुनाव’ के नाम से संविधान में एक खंड जोड़ने की सिफारिश कर सकती है, जिसमें इस योजना से जुड़े सारे नियम और कानून शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि कोविंद कमेटी एक कॉमन मतदाता सूची के साथ सारे...

  • क्या पार्टियां देवमंदिर और नेता देवता है?

    आज सुप्रीम कोर्ट में यह दावा कैसे हो रहा, कि राजनीतिक दल अन्य संस्थाओं, नागरिकों से ऊपर और वित्तीय हिसाब देने से परे हैं? इस से बड़ी जबरदस्ती और सत्ता का दुरुपयोग क्या होगा - कि जो सब से अधिक लोभ-लालसा के शिकार होने, और भयंकर गड़बड़ियाँ कर सकने की स्थिति में हो, उसी को जबावदेही से मुक्त कर दें! .. क्या राजनीतिक दल और उन के नेता कोई देवमंदिर और देवता हैं, जिन की हस्ती दूसरी संस्थाओं और मनुष्यों से ऊपर है?...क्या हम रूस वाली सोवियत व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ पार्टी और राज्य एकम-एक बना दिए...

  • भारत में कसौटी पर चुनावी रेवड़ियां…!

    भोपाल। भारत में लोकतंत्र चाहे 75 साल का बूढ़ा हो गया हो किंतु इसके अपना चुनावी रेवड़ियां बांटने का फैसला बदला नहीं है, ...और भारत के वोटर...? वे तो इसी संस्कृति के आदी हो गए हैं। राजनीतिक दल व उसके नेता जनता के सामने लोकलुभावन वादों की सूची के साथ आते हैं और नतीजे आने के बाद यह विश्लेषण होने लगता है कि जीत-हार में किन वाद की क्या भूमिका रही। कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव से 6 महीने पहले ही एसे वादों की फेहरिस्त जारी कर दी है। दुविधा यह है...

  • लोकतंत्र की अफ़ीम के चटोरों का देश

    तो राजनीति अगर शुद्ध-सेवा है और अगर हमारे राजनीतिक इस पवित्र भाव में सराबोर हो कर सेवक बनने की होड़ में लगे हैं तो फिर तो भारत-भूमि धन्य-धन्य है कि हमें ऐसे जन-प्रतिनिधि मिले हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे राजनीतिक दल मिले हैं और उन राजनीतिक दलों के ऐसे आलाकमान मिले हैं, जो सुनिश्चित करते हैं कि हर चुनींदा सहयोगी को बारी-बारी से सेवा का मौका मिले। सबको बराबरी के अवसर देने का धर्म निभाने के लिए उनका अभिनंदन होना चाहिए। लोकतंत्र में जन-निर्वाचन के ज़रिए चुन कर आए सेवा-उद्यत प्रतिनिधियों की दो टोलियां अपने-अपने मुखियाओं को कबीले...

  • ‘राज्यपाल’ विवाद : राजनीति ने संवैधानिक पद को बदनाम किया…?

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • झूठ की आईटी सेलो से भारत का क्या बनेगा?

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • घटनाएं विपक्षी एकता बनवा रही हैं

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • चुनाव से पहले कानूनी लड़ाई!

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • उद्धव जैसा हस्र किसी का हो सकता है

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • और लोड करें