social audit

  • योजनाओं का हो ‘सोशल ऑडिट’

    हर तरफ़ से तबाही के विचलित करने वाले दृश्यों को देख मन में यही सवाल उठा की इस साल मानसून की पहली बारिश से जो हाल हुआ है क्या उसै वास्तव में प्राकृतिक आपदा मानी जाए? क्या इस तबाही के पीछे इंसान का कोई हाथ नहीं? क्या भ्रष्ट सरकारी योजनाओं के चलते ऐसा नहीं हुआ? कब तक हम ऐसी तबाही को कुदरत का क़हर मानेंगे? कई दशकों पहले देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से यह बात स्वीकार की थी कि जनता के विकास के लिए आवंटित धनराशि का जो प्रत्येक 100 रूपया दिल्ली से जाता है, वह जमीन...