South Asia

  • दक्षिण एशिया का पिछड़ापन

    दक्षिण एशिया में 29 करोड़ बाल दुल्हनें हैं। यह संख्या वैश्विक संख्या के 45 प्रतिशत के बराबर है। यह उचित ही है कि यूनिसेफ ने बाल विवाह का अंत करने के उपाय करने का आह्वान किया है। यह आज की दुनिया की हकीकत है कि आर्थिक या सामाजिक पिछड़ेपन की जो भी रिपोर्ट आती हो, उसमें दक्षिण एशिया की सूरत सबसे खराब उभरती है। दक्षिण एशिया में तीन देश तो वो हैं, जो 1947 तक एक ही देश का हिस्सा होते थे। धार्मिक आधार पर तब देश के बंटवारे के बावजूद अगर सामाजिक और सांस्कृतिक कसौटियों पर देखें, तो इस...

  • चीनी मकड़जाल में फंसा दक्षिण एशिया

    चीन को किसी प्रचलित भाषा या संज्ञा से नहीं बांधा जा सकता। उसकी राजनीति में जहां हिंसक मार्क्सवाद है, तो आर्थिकी निकृष्ट पूंजीवाद पर आधारित है, जहां अमानवीय और उत्पीड़न युक्त साम्राज्यवाद का बीभत्स रूप दिखता है। इसी विषाक्त कॉकटेल रूपी चिंतन से वह अपनी अति-महत्वकांशी और खरबों डॉलर की 'वन बेल्ट वन रोड' (ओबीओआर) परियोजना से पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश सहित 130 से अधिक देशों की संप्रभुता और आर्थिक संरचना को अपने एजेंडे की पूर्ति हेतु प्रभावित कर रहा है। मानव सभ्यता चाहे कितना भी विकास कर लें, उसमें व्याप्त राक्षसी प्रवृतियां आज भी जस की तस है। कमजोर...

  • चीन-रूस की धुरी पर पूरा दक्षिण एशिया

    पूर्वी, दक्षिण पूर्वी और मध्य एशियाई देशों की तरह अब पूरा दक्षिण एशिया भी चीन की धुरी पर घूमने लगा है। कारोबार के मामले में दक्षिण एशिया के ज्यादातर देश चीन पर निर्भर हैं। एक तरह से दक्षिण एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चीन पर निर्भर हो गई है। भारत का चीन से आयात जहां एक साल में एक सौ अरब डॉलर पहुंचा है वही पड़ोसी बांग्लादेश की निर्भरता भी चीन पर बढ़ रही है। चीन से उसका आयात 16 अरब डॉलर है, जबकि निर्यात एक अरब डॉलर भी नहीं है। बांग्लादेश के विदेशी कारोबार में 15 फीसदी से ज्यादा हिस्सा...