इसका उपाय क्या है?
क्या इस मामले में भारत लाचार है? दुर्भाग्य से बात ऐसी ही लगती है। स्पष्टतः यह उद्योग-धंधों के शृंखलाबद्ध विकास को ऩजरअंदाज करने का परिणाम है। यह बुनियादी ढांचे के विकास की अनदेखी का भी नतीजा है, जिससे भारतीय उत्पाद महंगे हो जाते हैँ। भारत और चीन के आपसी व्यापार के जो गुजरे साल के आंकड़े सामने आए हैं, वे सचमुच चिंता बढ़ाने वाले हैँ। इसके मुताबिक बीते वर्ष भारत-चीन का आपसी कारोबार 135.98 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। यह अपने-आप में चिंता की बात नहीं होती, बशर्ते आयात और निर्यात का अनुपात संतुलित रूप से आगे बढ़ा होता। मगर...