हमास से जीतेगी भाजपा!

हमास से जीतेगी भाजपा!

हां, इजराइल और दुनिया में भले नेतन्याहू का ग्राफ गिर रहा हो लेकिन भारत में हमास बनाम इजराइल की लड़ाई से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्राफ उछलता हुआ है। सोचे, टीवी चैनलों पर कैसा लगातार, चौबीसों घंटे हमास बनाम इजराइल की लड़ाई का प्रसारण है। लड़ाई वहा हो रही है और भारत के टीवी चैनल हिंदू बनाम मुस्लिम लड़ाई के पानीपत मैदान बने हुए है। कभी शरद पवार, सुप्रिया सुले, कांग्रेस, औवेसी के हवाले इंडिया एलायंस को तुष्टीकरण का झंडाबरदार बताना तो कभी इजराइल से लाइव प्रसारण से आंतकवादी बर्बरता के हवाले हिंदू दिल-दिमाग, भावनाओं में सुरक्षा की चिंताओं को जगाना।

जाहिर है 2024 के आम चुनाव से पहले के मौजूदा 2023 के विधानसभा चुनाव में हमास और उसकी आंतकी बर्बरता को घर-घर पहुंचाने का महाअभियान चला है। इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ में लोगों का फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बनवाना है। भाजपा का चुनाव मोटामोटी या तो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर है या लाभार्थियों के घरों में यह मैसेज देने का है कि आपको फंला-फंला लाभ हुआ तो फर्ज है कि मोदीजी को वोट दे। मगर लाभार्थी का पहलू छतीसगढ़ व राजस्थान में ज्यादा नहीं चल सकता क्योंकि भूपेश बघेल और अशोक गहलोत ने लोगों को इतना बांटा है कि उनके आगे मोदी सरकार का बाटना फीका है। कांग्रेस ने चुनाव को ले कर जो वचनपत्र बनाया है वह भी आगे पूरा खजाना खोलना जैसा है। क्या गजब आईडिया जो भूपेश बघेल सरकार गांव वालों, किसानों से दो रू. किलों गौबर खरीद रही है। इसलिए रेवडियों और लाभार्थियों से पहले की तरह वोट मिलने का मामला खटाई में पडा लगता है। मध्यप्रदेश में लाडली बहन योजना के हवाले शिवराजसिंह चौहान  का नाम है मगर लड़ाई क्योंकि मोदीजी के चेहरे पर है, लोकसभा चुनाव की बेकग्राउंड में है तो भाजपा को हिंदुओं की भावनाओं को ऊबालना है। भावनाओं को देश की सुरक्षा, आंतकवाद, विश्व गुरू, विश्व मित्र जैसे जुमलों की धुरी पर दौडाना है। और इसलिए विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के साथ आंतकी हमास के पुराण पर मुस्लिम बनाम हिंदू के सियासी मैदान की टेस्टीग है। कांग्रेस वचनपत्र से लोगों को रूझाएगी वहीं भाजपा का मोदी के चेहरे से हल्ला बन रहा है कि उनका सखा, साथी, दोस्त नेतन्याहू कैसे उनसे सलाह कर हमास व आंतकियों को तबाह कर दे रहे है।

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Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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