government resign due spy : नई दिल्ली । इन दिनों राहुल गांधी समेत अन्य राजनीतिक हस्तियों, प्रभावशाली लोगों, पत्रकारों और आम लोगों तक की जासूसी की चर्चा आम है। संसद में गतिरोध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम कुछ सवालों से बच रही है। परन्तु देश में एक ऐसा भी प्रधानमंत्री हुआ था, जिसने दो कांस्टेबलों से जासूसी के आरोप मात्र पर इस्तीफा दे दिया था।
जासूसी करवाने के कारण केवल अमेरिका की निक्सन सरकार ही नहीं गई, बल्कि भारत में भी एक सरकार जा चुकी है। हालांकि USA निक्सन सरकार पर वाटरगेट मामले में जासूसी का आरोप साबित हुआ था। परन्तु भारत में जो सरकार गई, उस प्रकरण में तो केवल आरोप मात्र लगा। पीएम ने जांच करवाने को कहा। बजट सत्र के दौरान कांग्रेस आई वाकआउट कर गई। अल्पमत में आई सरकार ने इस्तीफा दे दिया।
'प्रधानमंत्री का पद कोई मजाक नहीं'
हम बात कर रहे हैं देश के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की। government resign due spy : मामला राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी की जासूसी करवाने के आरोपों से जुड़ा था। जैसे ही संसद में गतिरोध हुआ। चन्द्रशेखर ने जांच करवाने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। हालांकि जासूसी करवाए जाने की बात साबित भी नहीं हुई थी। सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही चल रही थी। कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से पहले ही चन्द्रशेखर ने इस्तीफा दे दिया था। बाद में राजीव गांधी की ओर से शरद पवार को इस्तीफा वापस लेने के लिए भेजा भी गया कि हमने समर्थन वापस नहीं लिया है। परन्तु चन्द्रशेखर ने कहा कि वह दिन में तीन बार अपने फैसले नहीं बदलते। प्रधानमंत्री का पद कोई मजाक नहीं है।ऐसे बनी और गई थी सरकार
बता दें कि बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लिए जाने से 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी। मंडल आयोग और बाबरी मस्जिद विवाद के चलते देश के एक तिहाई के करीब इलाके में तनावग्रस्त हालात थे। उस वक्त देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी खत्म होने को था। ऐसे समय में कोई बड़ा दल सरकार बनाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था। ऐसे वक्त में यदि मध्यावधि चुनावों की घोषणा की जाती तो चुनाव करवाए जाने तक देश में हालात बड़े अस्थिर होने की आशंका थी। राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण की पहल पर राजीव गांधी और चन्द्रशेखर के बीच करार हुआ। राजीव ने कम से कम एक साल तक चन्द्रशेखर को समर्थन देने का वादा किया। चन्द्रशेखर ने पीएम बनने के बाद बाबरी विवाद, असम विवाद, खालिस्तान मुद्दों और कश्मीर विवाद पर प्रभावी काम करने की कोशिश की। चन्द्रशेखर लोकप्रिय होने लगे तो कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को अपना भविष्य थोड़ा असुरक्षित दिखा।कांस्टेबल बने आधार
2 मार्च 1991 को हरियाणा पुलिस के कांस्टेबल प्रेम सिंह और राज सिंह को राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर से जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। दोनों सादे लिवास में थे। दोनों ने स्वीकार किया कि उन्हें सूचना एकत्रित करने के लिए वहां भेजा गया था। मामले को लेकर जैसे राजनीतिक भूचाल आ गया। उस समय बजट सत्र चल रहा था। आखिर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा ( government resign due spy ) देने की घोषणा करनी पड़ी थी। Read also Pegasus hacking : पाकिस्तान ने भारत पर लगाया आरोप, जासूसी का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की धमकीभारत में सरकारी जासूसी के आरोप कब कब लगे
- 2018 में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के घर के बाहर से भी इंटेलीजेंस ब्यूरो के चार जासूस पकड़े गए थे। हालांकि गृह मंत्रालय ने कहा था कि जनपथ हाई प्रोफाइल इलाका है। यहां आईबी के अफसरों की पेट्रोलिंग लगती रहती है।
- इससे पूर्व 2014 में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के घर अवैध रूप से सीक्रेट हाई पावर लिसनिंग डिवाइस बरामद हुई थी।
- भारतीय सियासत में सबसे पहला जासूसी का मामला प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ़्तर में जासूसी का था। बात 1985 की है इस पर बहुत हंगामा हुआ और 10 से ज़्यादा लोग गिरफ्तार किए गए थे लेकिन बाद में इस पर पर्दा गिर गया।
- हालांकि इससे भी पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी बहू और आज की भाजपा नेता मनेका गांधी के घर पर जासूसी करवाई थी। सीबीआई के तत्कालीन अधिकारी एमके धर ने यह स्वीकारा भी।
- पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के वीपी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके खिलाफ ख़ुफिया 'लिसनिंग डिवाइस' लगवाकर जासूसी करवाने का आरोप जड़ा था। वीपी सिंह सरकार ने इसका खंडन भी किया, लेकिन चंद्रशेखर उनसे हमेशा नाराज ही रहे।
- लाल कृष्ण आडवाणी ने भी मनमोहनसिंह के समय यूपीए शासन के दौरान ये आरोप लगाया था कि उनकी जासूसी हो रही है। इस पर भी संसद में बड़ा हंगामा हुआ था और जांच की मांग की गई। सरकार ने आडवाणी के आरोपों का खंडन किया और कहा जांच की ज़रूरत नहीं बताई।
- 2012 में तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी के दफ़्तर की जासूसी की ख़बर भी सामने आई थी। यह बात उस समय सामने आई, जब मिलिट्री इंटेलिजेंस के कुछ अधिकारी रक्षा मंत्री एंटनी के आफिस की रुटीन जांच में थे।
- जून 2011 में उस समय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी का मामला भी सामने आया था। जांच के भी आदेश जारी किए गए परन्तु इस छानबीन का भी कोई नतीजा नहीं निकला।