नई दिल्ली | भारतीय हॉकी अपने आप में एक गौरवशाली इतिहास है। इसमें ऐसे—ऐसे जादूगर हुए हैं, जिन्होंने इस खेल में देश को गौरव दिलाया है। हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में जिनका ओलंपिक में गोल औसत मेजर ध्यानचंद (Indian Hockey Player Olympic Mejor Dhyan Chand) से भी ज्यादा था। एक ऐसा खिलाड़ी जिसके नाम पर जर्मनी के ओलंपिक स्टेडियम में एक दीर्घा और सड़क है। एक ऐसा खिलाड़ी जिसे सर्वकालिक महान ओलंपियन्स में शामिल किया गया। ध्यानचंद खुद अक्सर कहा करते थे कि वह मुझसे बेहतर खेलते हैं। परन्तु इस देश ने उन्हें भुला दिया। उनके नाम पर एक हॉकी स्टेडियम था, जिसे क्रिकेट में बदल दिया गया। यही नहीं उन्हें अपने टीबी का इलाज कराने के लिए गोल्ड मैडल बेचने पड़े।
हम बात कर रहे हैं रूप सिंह बैंस (Indian Hockey Player Olympic Roop Singh Bains) की। जी हां! रूप सिंह ध्यानचंद से भी अधिक गोल करते थे। तेज शॉट के लिए मशहूर रूप सिंह ध्यानचंद के सगे छोटे भाई थे। आपने हॉकी के इतिहास में यूएसए का वह मैच पढ़ा—सुना होगा कि भारत ने 24—1 से अमेरिका को उसी के घर में रौंद दिया था। यह चमत्कार बदौलत रूप सिंह संभव हो पाया। रूप सिंह अकेले ने उस गेम में दस गोल ठोक दिए थे। जब रूप सिंह ने अमेरिका के खिलाफ दस गोल किए तो स्थानीय मीडिया ने उन्हें द लॉयन कहकर संबोधित किया। रूप सिंह 1932 के लॉस एंजिल्स और जर्मनी के म्युनिख ओलंपिक में सात मैच खेले और 22 गोल ठोके। 1932 के ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल ध्यान चंद के नहीं, रूप सिंह के रहे मेजर ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में कुल 13 मैच खेले और 39 गोल किए थे।
ध्यानचंद के ओलंपिक गोल का औसत 3 गोल प्रति मैच था और छोटे भाई रूप सिंह का अपने दद्दा से ज्यादा औसत रहा। रूप सिंह अपने जमाने में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लेफ्ट इन खिलाड़ी थे। रूप सिंह ने ओलंपिक खेलों में मेजर ध्यानचंद से ज्यादा गोल किए हैं। उनका स्टिक वर्क गजब का था। उनके शॉट इतने तेज होते थे कि कई बार डर होता था कि उससे कोई घायल न हो जाए। ऐसे में ध्यानचंद उन्हें डांटते रहते थे।
ध्यानचंद नहीं चाहते थे बेटा हॉकी खेले
ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार भी हॉकी के शानदार प्लेयर रहे हैं। वे 1972 के म्युनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे। वे भारत द्वारा हॉकी विश्वकप जीतने वाली टीम में भी खेले थे। ध्यानचंद नहीं चाहते थे कि उनका बेटा हॉकी खेले। उन्हें हॉकी खेलना उनके पिता नहीं नहीं सिखाया। अशोक कुमार अपने चाचा रूप सिंह से हॉकी खेलना सीखे थे। रूप सिंह स्टाइलिश रहना पसंद करते थे। आर्मी में थे। लम्बे—चौड़े खूबसूरत शरीर के मालिक रूप सिंह को जब 1932 में इंडियन टीम से चुना गया तो उन्होंने ओलंपिक जाने से इनकार कर दिया था। सिर्फ इसलिए कि उनके पास ढंग के कपड़े नहीं थे। ध्यानचंद ने उन्हें कपड़े दिलवाए तब जाकर वे राजी हुए। म्युनिख में 1972 में हुए ओलंपिक में रूपसिंह को बतौर अतिथि बुलाया गया, लेकिन वे आर्थिक कारणों से नहीं जा पाए। वहां उनके नाम एक दीर्घा रखी गई.
दोनों भाइयों का ओलंपिक में स्थान
1928 में ध्यानचंद ने 5 मैचों में 14 गोल किए
1932 में मेजर ध्यानचंद ने 3 मैच खेले और 12 गोल किए।
1936 के जर्मनी ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैच में 13 गोल किए।
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रूप सिंह 1932 में 3 मैच खेले और 13 गोल किए। 1936 में रूप सिंह ने 5 मैच में 9 गोल किए। रूप सिंह के भतीजे अशोक कुमार कहते हैं कि उनके हिट गोली की तरह गोल में जाते थे। कई मर्तबा बाबूजी यानि मेजर ध्यानचंद ने उन्हें यह कहते हुए मैच से बाहर भी किया कि तुम मैच खेलने आए हो या खिलाड़ी को घायल करने।’ रूप सिंह का पूरा समय यदि मैदान में बीतता तो वे और अधिक गोल कर देते।
रूप और ध्यान ने रचा इतिहास
1936 के म्युनिख ओलंपिक में जर्मनी की टीम लगातार हमले कर रही थी। रूपसिंह एकमात्र गोल स्कोरर रहे थे इंटरवल तक। ध्यानचंद घायल हो गए थे। अब रूप सिंह ने कहा दद्दा आप आगे खेलिए। हम बढ़त नहीं बनाएंगे तो जर्मन गोल बराबर कर लेंगे। दोनों भाई जूते उतारकर नंगे पैर हो गए और रूप के पास पर ध्यानचंद गोल दागते गए। उस मैच में ध्यानचंद ने चार गोल किए। हिटलर मैच के बीच में ही उठकर चला गया।
यह मिला सम्मान
वे महाराजा सिंधिया की सेना में नौकरी करते थे। इसलिए परिवार ग्वालियर में रहता था। ग्वालियर में कैप्टन रूप सिंह के नाम पर एक हॉकी स्टेडियम रखा गया था। 1988 में उसे क्रिकेट स्टेडियम में बदल दिया गया। 1936 के ओलंपिक में उनके प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद म्यूनिख ओलंपिक स्टेडियम कॉम्पलेक्स एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया था। वह केवल तीन भारतीय खिलाड़ियों में से थे, जिन्हें सर्वकालिक महान ओलंपियन में शुमार करते हुए लंदन में ट्यूब स्टेशनों में से एक का नाम दिया गया।
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इन दुश्वारियों में गए रूप सिंह
विदेश में रूप सिंह के सम्मान और प्रशंसा के बावजूद, भारतीय हॉकी महासंघ द्वारा उनके साथ दयनीय व्यवहार किया गया। रूप सिंह ने आर्थिक तंगी को इतना झेला कि जब वे टीवी से गंभीर रूप से बीमार थे, तो उनके परिवार को उनके इलाज के लिए धन जुटाने के लिए अपने ओलंपिक स्वर्ण पदक और अन्य ट्राफियां बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह भारतीय हॉकी की विडंबना और त्रासदी है, जो आज भी जारी है। indian hockey player olympic