लखनऊ। खादी -फैब्रिक ऑफ फ्रीडम, जंगे आजादी और स्वदेशी का प्रतीक। वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में अपनी नयी भूमिका में है। खादी के मास्क जिंदगी बचाने से लेकर लाखों लोगों की जीविका का जरिया बन चुके हैं।
खादी के मास्क से कितनों की जिंदगी बची यह तो नहीं बताया जा सकता है, पर उत्तर प्रदेश में -- स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी करीब छह लाख महिलाओं को रोजगार मिल चुका है।
अब तक करीब छह लाख मीटर खादी के कपड़ों से बने 5.7 मिलियन मास्क वाजिब दाम प्रति मास्क 10 रुपये पर लोगों को दिये जा चुके हैं। यह क्रम अभी जारी है। खास बात यह है कि जिन महिलाओं को अभूतपूर्व संकट के इस दौर में रोजगार मिला है, वे ग्रामीण क्षेत्रों की हैं। यह समाज का वह तबका है जो 25 मार्च को घोषित लॉकडाउन से सर्वाधिक प्रभावित रहा।
इस तबके को न केवल प्रतिदिन 200 रुपये के औसत से रोजगार मिला बल्कि जहां जरूरत हुई वहां मास्क की गुणवत्ता के अनुपालन के लिए इनको प्रशिक्षण भी दिया गया। आज स्थिति यह है कि खादी के मास्क कोरोना के खिलाफ जारी जंग के प्रमुख हथियार - सोशल डिस्टेंसिंग, हैंडवॉश-सैनीटाइजर में से एक है।
इस तरह खादी के मास्क के लिए पहल करने वाला उत्तर पद्रेश पहला राज्य बन गया है। अप्रैल 2020 में घर से निकलने पर मास्क को अनिवार्य किए जाने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में इसके लिए पहल शुरू कर दी गयी। तय हुआ कि खादी विभाग कपड़े मुहैया कराएगा। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं का सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) इसको बनाएंगी।
जान बचाने से लेकर जीविका का जरिया बना खादी का मास्क
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