विपक्षी पार्टियों के साथ साथ तटस्थ राजनीतिक विश्लेषक भी यह हिसाब लगाने में लगे हैं कि भाजपा को चार सौ सीट आएगी या नहीं। वैसे भाजपा ने 370 सीट का दावा किया है और एनडीए के लिए चार सौ सीट का लक्ष्य तय किया है। यह पहली बार नहीं है, जब भाजपा ने इतना बड़ा लक्ष्य तय किया है। हर बार भाजपा का लक्ष्य बड़ा ही होता है। राज्यों के चुनाव में भी भाजपा का लक्ष्य हमेशा बड़ा होता है। यह अलग बात है कि कई बार भाजपा उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती है। लेकिन अगली बार फिर वह उसी तरह का लक्ष्य तय करती है। पहले पार्टियां पूर्ण बहुमत का दावा करती थीं। फिर हवा बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत हासिल करने का दावा किया जाने लगा और फिर भाजपा का मौजूदा नेतृत्व आया, जिसने इसे संख्या में बदल दिया। राज्यों की विधानसभाओं में सीटों की संख्या के 80 फीसदी यानी तीन चौथाई से ज्यादा सीट जीतने का दावा किया जाने लगा।
सबको ध्यान होगा कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में दिल्ली में भाजपा ने क्या लक्ष्य तय किया था। भाजपा ने 2015 के चुनाव में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 50 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था। लेकिन वह सिर्फ तीन सीट जीत पाई। इसी तरह 2020 के चुनाव में भी भाजपा ने 50 सीट का लक्ष्य रखा तो आठ सीट जीत पाई। झारखंड में 2019 में भाजपा ने राज्य की 81 में से 65 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा तो उसे 25 सीटें मिलीं। बिहार में जब भाजपा नीतीश से अलग लड़ रही थी तो 2015 में डेढ़ सौ सीट का लक्ष्य रखा था तो उसे सहयोगियों के साथ कुल 59 सीटें मिलीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में भाजपा ने दौ सौ से ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा था तो वह 77 सीट जीत पाई। महाराष्ट्र, हरियाणा आदि अनेक राज्यों में भाजपा ने इस तरह के भारी भरकम लक्ष्य रखे और कई बार वह उनके नजदीक भी नहीं पहुंच पाई। इसलिए उसके 370 और चार सौ के लक्ष्य पर चर्चा की बजाय विपक्षी पार्टियों को अपनी वास्तविक शक्ति का आकलन करना चाहिए।