देवबंद। पाश्चात्य संस्कृति से जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूरी तरह से सराबोर है वहीं सहारनपुर का ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नगर देवबंद से आठ किलोमीटर दूर मंगलौर रोड़ पर काली नदी के तट पर बसा मिरगपुर हिंदुस्तान के नक्शे पर एक ऐसा अनूठा गांव है जो अपने विशेष रहन सहन और सात्विक खान पान के लिए देशभर में विख्यात है।
गांव के बाहर काली नदी के किनारे ऊंचे टीले पर बाबा फकीरा की समाधि बनी हुई है । यहां हर साल उनकी याद में महाशिवरात्रि से ठीक पहले भव्य मेला लगता है। इस बार यह मेला आज मंगलवार को बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ गांव में आयोजित किया गया।
मेले में स्थानीय लोगों के साथ.साथ , राजस्थान, पंजाब, उत्तरांचल एवं हरियाणा आदि प्रदेशों से हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर प्रसाद चढ़ाया और गुरू जी का आशीर्वाद लिया। गांव के लोगों ने आज अपने.अपने घरों में देसी घी का हलवा और पेड़े तैयार किए। गांव के लोगों के सभी सगे संबंधी भी हर बार की तरह इस बार भी यहां पधारे।
गुर्जर बिरादरी के नेता खासतौर से इस दिन यहां हाजिरी लगाना अपने लिए जरूरी समझते हैं। सहारनपुर के प्रमुख गुर्जर नेता एवं पूर्व सांसद यशपाल सिंह के परिवार के लोग, सपा विधायक संजय गर्ग, पूर्व विधायक मनोज चौधरी, करतार सिंह भड़ाना , मुजफ्फरनगर की पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष रमा नागर आदि इस गांव से खास लगाव रखते है। मिरगपुर गांव आज भी भारतीय संस्कृति से ओत.प्रोत है और देश में अनूठी मिसाल बना हुआ है।
दिल्ली से 120 किलोमीटर दूरी पर बसा करीब 15 हजार की आबादी का यह विशिष्ठ गांव खुद में देशकी संस्कृति के साथ.साथ अनेकों खूबियां भी संजोए हुए है। गांव की नब्बे फीसद आबादी हिंदू गुर्जरों की है। वहां के निवासियों की बड़ी खूबी यह है कि वे सभी तरह के नशे एवं तामसिक खानपान से मुक्त हैं। कोई भी व्यक्ति भोजन में मांस, प्याज, लहसुन तक का प्रयोग नहीं करता है। वे शराब, पान, बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का, गुटका, गांजा, अफीम एवं भांग आदि मादक पदार्थों का भी कतई सेवन नहीं करते है।
शासकीय मानकों के अनुसार मिरगपुर विकास खंड़ देवबंद का आदर्श गांव है। सामाजिक तौर पर यह गांव धूम्रपान रहित गांव की श्रेणी में शुमार होने के कारण समाज में एक दुर्लभ मिसाल बना है। गुर्जर बहुल इस गांव की दूसरी जाति भी खान.पान और रहन.सहन में गुर्जरों का ही अनुसरण करती है। ये सभी व्यसन पूरे गांव में पूरी तरह से वर्जित है। गांव को मद्यरहित बनाने के पीछे पूरे गांव के गुरू माने जाने वाले बाबा फकीरा दास की सीख आज भी काम कर रही है।
आज से करीब पांच सौ साल पहले मुगल सम्राट नसरूद्दीन मौहम्मद जहांगीर जो अकबर के बडे बेटे और उत्तराधिकारी थे के शासनकाल में बाबा ने अपने शिष्यों को जेल से इसी शर्त पर रिहा कराया था कि वे कभी भी धूम्रपान और मांसाहार का सेवन नहीं करेंगे तब पूरे गांव ने श्रद्धापूर्वक बाबा की शर्त को स्वीकार करते हुए जो प्रतिज्ञा ली थी जिसका गांववासी आज भी पालन कर रहे है।
सात्विक खान.पान के कारण ही यहां के लोगों का व्यक्तित्व निराला है। लंबे.छरछरे और गौरे रंग की नस्ल के मिरगपुरवासी स्वाभिमानी है। मिरगपुरवासियों का इलाके में दबदबा है। मिरगपुर गांव में दर्जन भर दुकानों में से सिर्फ दो ही दुकानों पर बीड़ी.सिगरेट मिलती है। वह भी दूसरे प्रदेशों से यहां आने वाले मजदूरों के लिए।
गांव वालों के मुताबिक मुगल सम्राट जहांगीर के राज 1610 मे इस अनूठी परंपरा की नींव पडी थी जब बाबा फकीरादास यहां आकर रूकेे। गांव के लोगो के मुताबिक पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत राजेश पायलट का इस गांव से बहुत लगाव था। उन्होंने गांव में पुल बनवाकर लोगों को बड़ी राहत प्रदान की थी। पायलट की स्मृति में गांव में प्रवेश द्वार पर उनकी प्रतिमा लगाई गई है। राजेश पायलट के प्रयासों और प्रेरणा से गांव की काली नदी पर पुल बनाए जाने का काम हुआ था। जिससे गांव को बहुत बडा फायदा हुआ और उसके बाद गांव मुख्य सडकों से जुड गया। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती.बाडी है। गांव में गन्नें की फसल खूब होती है।
खेती और ग्रामीणों की मेहनत एवं सात्विकता के बूते ही गांव में समृद्धि और खुशहाली दिखती है। गांव मिरगपुर में गुुर्जरों की तादाद भले ही पांच.छह हजार के करीब हो लेकिन गांव और उसके लोगों की हमेशा से यह खूबी रही है कि राजस्थान और हरियाणा के गुर्जर भी इस गांव से गहरा लगाव रखते है। अखिल भारतीय गुर्जर महासभा से जुडे चौधरी वीरेंद्र सिंह के मुताबिक जहांगीर के शासनकाल में गांव के लोग जब मुस्लिम आतताइयों के अत्याचार से बुरी तरह से त्रस्त थे तब उनके गांव में पंजाब के संगरूर जिले के घरांचो इलाके से घूमते.घामते सिद्ध पुरूष बाबा फकीरा दास पहुंचे जिनका गांव में एक पखवाड़े का प्रवास रहा।
उन्होंने अपने चमत्कारिक व्यक्तित्व से ग्रामीणों को अभिभूत कर दिया और उन्हें उपदेश दिया कि यदि इस गांव के लोग नशा और दूसरे तामसिक व्यंजनों का पूरी तरह से परित्याग करते हैं तो यह गांव सुखी और समृद्धशाली बन जाएगा। यहां के लोग इस परंपरा का पालन 17 वीं शताब्दी से लगातार करते चले आ रहे है। गांव के लोग बताते है कि जो लोग इस परंपरा का उल्लंघन करते है उन्हें गुरू जी खुद ही सजा देते है। वह कहते है कि परंपरा का पालन न करने वाले कई लोग अस्वाभाविक मौत का शिकार हुए। गुर्जर अपनी बिरादरी में बड़ी सख्ती के साथ इस निषेध को लागू करते है।