भोपाल । मुम्बई का पृथ्वी थियेटर नाट्य मंचन के लिये एक जाना पहचाना प्रतिष्ठित स्थान लंबे समय से बना हुआ है। इसकी प्रतिष्ठा के पीछे बड़ा कारण यह रहा है कि मुम्बई में हिन्दी रंगमंच को स्थापित करने में पृथ्वी थियेटर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। देश के नामचीन रंग निर्देशकों की यह जगह पहली पसंद रही है जहां वे अपने नाटकों का मंचन करते रहे हैं। यहां होने वाले नाटकों के दर्षकों में भी रंगमंच और सिनेमा के बड़े नाम शामिल रहे हैं। अब जिस पैमाने पर मुम्बई में हिन्दी में नाटक तैयार हो रहे हैं, उनके मंचन के लिहाज से पृथ्वी थियेटर में तारीख मिलना मुश्किल या कहें असंभव होता जा रहा है।
बड़े पेशेवर नाटकों के लिये वैसे भी 180 सीटों वाला पृथ्वी थियेटर कभी व्यवहारिक नहीं रहा और ऐसे नाटकों का मंचन अधिक दर्शक क्षमता वाले बड़े आडिटोरियम में पहले भी होते थे और अब भी हो रहे हैं। गैर पेशेवर नाटकों के लिये पृथ्वी थियेटर में नाटक करना प्रतिष्ठा का प्रश्न होने के साथ ही व्यवहारिक विकल्प था लेकिन पृथ्वी में तारीख नहीं मिलने से ऐसे नाटकों के मंचन की समस्या बन गई थी जिसके समाधान के रूप में बरसोवा के आराम नगर उभरा जहां 100-150 दर्शक क्षमता के एकाधिक स्टुडियो विकसित हो गये हैं जहां लगभग हर दिन बड़े-बड़े निदेशकों के भी नाटकों का मंचन हो रहा है।
लगभग एक दशक पहले आराम नगर में थियेटर वर्कशाप लगने का सिलसिला शुरू हुआ था। तब देव फौजदार का वर्कशाप काफी लोकप्रिय हो गया था और देश भर से नौजवान उसकी वर्कशाप में बाकायदा सशुल्क शामिल होकर प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। देव की रंग संस्था नाट्य किरण मंच का वह स्टुडियो अब थियेटर वर्कशाप के लिये जाना पहचाना स्थान बन चुका है।
देव के रंगमंच की शुरुआत दिल्ली में अस्मिता थियेटर की एक कार्यशाला से हुई। उसके बाद सुरेश भारद्वाज, निरंजन गोस्वामी, भारत रत्न भार्गव, प्रॉबीर गुहा, प्रसन्ना हेगडू, रोबिन दास, सहित देश के मूर्धन्य रंगकर्मियों से कार्यशालाओं के माध्यम से प्रशिक्षण लिया-संगीत नाटक अकादमी और नाट्यकुल्लम के संयुक्त संयोजन में भारतीय रंगमंच में एक वर्षीय डिप्लोमा भी प्राप्त किया। कल्चर मिनिस्ट्री से रंगमंच के लिए स्कॉलरशिप और फेलोशिप प्राप्त की और रंगमंच में डिप्लोमा के बाद दिल्ली आकर श्री राम सेंटर के पीछे पार्क में वर्कशॉप लगाई जहां अच्छी सफलता प्राप्त हुई। फिर अपने ग्रहक्षेत्र मथुरा में संदीपन नागर जी के साथ जुड़कर रंगमंच करने का प्रयास हुआ जिसमें पूरी तरह सफल ना होने पर मुंबई का रुख़ कर लिया।
देव मुम्बई तो आया एक्टर बनने के लिये लेकिन इसमें लंबी कतार देखकर एक्टर बनने का विचार छोड़कर छोड़कर वर्कशाप पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जिसका आयोजन वह शुरू से करता आ रहा था। तब इस इलाके में ऐसे स्टुडियों ज्यादा नहीं थे। अलग-अलग जगहों में सफल थियेटर वर्कशाप करने के बाद वह किसी ऐसे स्थान की तलाश में था जहां स्थायी रूप से वह अपना थियेटर स्टुडियो बना सके। उसकी यह तलाश पूरी हुई एक दशक पहले जब उसे आराम नगर में किराये पर जगह मिल गई। यहां उसका थियेटर स्टुडियो स्थापित हो गया और उसने स्वतंत्र रूप से थियेटर वर्कशाप और प्रशिक्षण का काम करने लगा। उसके इस प्रयास ने उसको एक अलग पहचान भी दी और उसके काम के लिये कुछ आर्थिक धरातल भी बनने लगा।
थियेटर और फिल्मों में अवसर पाने के आंकाक्षी नौजवान पूरे देश भर से बड़ी संख्या में मुम्बई आते हैं। ऐसे नौजवानों के लिये देव फौजदार का स्टुडियों एक विश्वसनीय पता बन गया और थोड़े समय में ही देव की लोकप्रियता इनके बीच स्थापित हो गई। अभिनेता बनने की चाह लेकर मुम्बई आये देव ने अपने थियेटर को प्रोडक्षन ओरियेंटेड बनाने के बजाय वर्कशाप थियेटर की ओर मोड़ा। इस तरह वह रंग अभिनेता या रंग निदेशक के साथ-साथ रंग प्रशिक्षक बन गया। इसी दौर में उसने ‘अंदाज ए आजाद’ गगन दमामा बाज्यो अंदाज ए आजाद जब शहर हमारा होता है दर्जन भर से अधिक नाटकों का निर्देशन भी किया जिनका सफलता पूर्वक मंचन देश के कई शहरों में होते रहे हैं।
आम तौर पर रंगकर्मी अपने और अपने काम को स्थापित करने के लिये नाटक करते हैं लेकिन देव मुझे अलग किस्म का जुनूनी रंगकर्मी लगा जो देश भर में रंगमंच का अलग जगाने में लगा हुआ है। घुमंतु रंगमंच की अवधारणा के साथ वह अलग-अलग राज्यों में जाकर अपने सहयोगियों के साथ रंगमंच कार्यशालाओं का आयोजन करता है जहां स्थानीय रंगकर्मियों को तैयार कर अपने साथ उन्हें जोड़ सके। उसके जुनून का आलम यह है कि अपने मोटरसाइकल से ही अपनी रंग यात्रा में वह निकल पड़ता है।
अनादि उर्जा रंग कार्यशाला की अवधारणा के साथ वह हिमालय की वादियों में एक दर्जन से अधिक कार्यशालाओं का आयोजन कर चुका है जहां स्थानीय रंगकर्मियों के साथ उनके सहयोगी रंगकर्मी हिस्सा लेते हैं। यह आयोजन इतना आकर्षक बन पड़ा है कि विदेशों से आये रंगकर्मी भी इन कार्यशालाओं में भाग लेने लगे हैं। भारतीय सनातन पद्धति पर आधारित इन कार्यशालाओं में रंगमंच के नये-नये आयाम तलाशे जा रहे हैं।
रंगमंच को प्रोत्साहित करने के लिये वह एक तरफ कार्यशालाओं के माध्यम से देश भर में नये रंगकर्मी तैयार करने में लगा है तो दूसरी ओर देश के वरिष्ठ रंगकर्मियां को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के लिये अपने प्रयासों में जोड़ रहा है। मैंने देखा कि मुम्बई के उसके माँ स्टुडियो में प्रशिक्षण लेने के लिये इन वरिष्ठ रंगकर्मियों का रिफरेंस और सिफारिश लेकर नौजवान आने लगे हैं।
अन्य शहरों में रंगमंच कर रहे रंगकर्मियां व रंग समूहों को मुम्बई आमंत्रित कर उनके नाट्य मंचन के लिये स्थान उपलब्ध कराने का काम भी देव की संस्था नाट्य किरण मंच लगातार कर रही है। हर माह किसी एक शहर की रंग संस्था के नाटक का न मंच उनके माँ स्टुडियो में नियमित रूप से होता है। साथ-साथ नाट्य समारोहो का भी आयोजन किया जा रहा है।
पारिवारिक स्वास्थ्यगत कारणों से पिछले 4-5 बरस में से मेरा मुम्बई जाने का मतलब हास्पीटल जाना रहा है। इसी में थोड़ा वक्त निकाल कर दोस्तों से मिलना और नाटक देखना होता रहा। कुछ समय पहले ऐसे ही मुम्बई प्रवास में मैं देव के माँ स्टुडियों चला गया। उसने वहां पूरा केम्पस डेवलेप कर लिया है जहां सुसज्जित छोटा आडिटोरियम है, लाइब्रेरी है, केंटीन है और बैठकर बातें करने, खाना खाने, किताबें पढ़ने तथा लिखने की मुकम्मिल व्यवस्था है। देवका यह स्टुडियो मुझे पूरी तौर पर पृथ्वी थियेटर का विकल्प लगा।
कुछ साल पहले मैं जब देव के पुराने स्टुडियों मंे गया था तब आराम नगर में इक्का दुक्का स्टुडियो ही थे लेकिन आज की तारीख में आराम नगर मुम्बई का मंडी हाउस बन चुका है जहां दर्जन भर स्टुडियों संचालित हो रहे हैं। यहां देश के नामचीन निदेशक अपना नाटक खेल रहे हैं और बाकायदा टिकट खरीदकर नाटक देखने वाले दर्षकों की भीड़ उमड़ने लगी है। देव के माँ स्टुडियो में अभी नियमित नाट्य मंचन नहीं होता क्यांेकि शाम को वहां रिहर्सल होती है। फिर भी यहां नाट्य मंचन की सारी सुविधायें उपलब्ध है। मैंने सुझाव दिया कि रिहर्सल का समय कुछ बदल कर यहां भी हर शाम नाटकों के मंचन का सिलसिला आरंभ किया जाये ताकि कुछ अतिरिक्त आर्थिक संसाधन उपलब्ध हो सके।
देव फौजदार का रंगमंच उसके अपने लिये न होकर रंगमंच के विकास का रंग आंदोलन का रंगमंच बनता जा रहा है। पूरे देश के रंगकर्मियों को जोड़ने के साथ ही बुजुर्ग व असहाय रंगकर्मियों को मदद पहुंचाने का प्रयास भी नाट्य किरण मंच कर रहा है। यह सुखद संयोग है कि देव की जीवन संगिनी बनने वाली बेला बारोट जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कलाकार है, देव के रंग आंदोलन से जी जान से जुड़ गई है जिससे देव के प्रयासों को और गति मिल रही है। दोनों थियेटर के लिये पूरी तरह समर्पित है और देश भर में थियेटर के विकास को विस्तार देने में लगे हुए हैं।
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