एक जनवरी 2020 से शुरू दशक भारत की पहचान का वह निर्णायक कालखंड होगा जो दस तरह की खदबदाहट, असंतोष, विद्रोह लिए हुए होगा तो संभव है सभ्यताओं के संघर्ष का बिगुल लिए पानीपत मैदान भी बने। यह दशक इक्सीसवीं सदी के पहले और दूसरे दशक जैसा सामान्य नहीं होगा। इसलिए क्योंकि अब कश्मीर से लेकर केरल, गुजरात से ले कर अरूणांचल प्रदेश तक वह पहचान सर्वत्र व्याप्त है जिसकी भगवा सतह का दुनिया में एक अर्थ है तो सतह के नीचे भारत में वर्ग विशेष, धर्म विशेष,क्षेत्र विशेष और लोगों में अलग-अलग अर्थ है तो इस सबके बीच विभाजकता की दरारे भी कम गहरी नहीं। संदेह नहीं कि बहुसंख्यकों के भारी, दो टूक जनादेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- गृह मंत्री अमित शाह को वह रंग, वह कूंची थमाई है जिससे भारत भगवा रंग गया है। हिंदू पहचान अब हकीकत है तो इसके खिलाफ विद्रोह भी हकीकत है। सन् 2019 तक हिंदू पहचान और हिंदू राजनीति घुमावदार रास्तों में लुका छुपी, अलग-अलग आवरणों की आड़ में थी। 1949 की 22 दिशंबर को अयोध्या में रामलला की मूर्ति ऱखे जाने से ले कर 2019 के सत्तर सालों में हिंदू पहचान मंदिर आदोलन जैसी छटपटाहट, राजनीति, मुकद्मों ध्वंस, दंगों व सत्ता लड़ाई से प्रकट थी मगर अब वह 2019 के इस कानून की पहचान से है कि भारत हिंदुओं की मातृ-पुण्य भूमि है।
हां, भारत राष्ट्र-राज्य के संविधान का नागरिकता संशोधन कानून हिंदू पहचान का अधिकृत वैश्विक ऐलान है। अमित शाह का यह बात डंके की चोट पूछना है कि दुनिया में यदि कहीं हिंदू का उत्पीड़न, अत्याचार होता है, मान ले यूगांडा से हिंदुओं को निकाला जाता है तो वे कहां जाएंगे? क्या भारत नहीं आएंगे, भारत क्या उन्हे शरण नहीं देगा? मतलब भारत ही हिंदुओं की, भारत में जन्म लिए जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्मों की नैसर्गिक, पुण्य भूमि है तो यह भारत का आधिकारिक तौर पर हिंदू होना हुआ या नहीं? वैश्विक निगाहों में, मुस्लिम देशों की निगाह में भारत भगवा माना जा रहा है या नहीं?
तभी 2020 का नया दशक दो टूक हिंदू पहचान से है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह और केंद्र की सरकार में न कोई कंफ्यूजन है, न लुंजपुंजपना है। सत्तर साल की हिंदू उहापोह, छटपटाहट, अनिर्णय, डर को अब स्थाई मंदिर मिल गया है। अब सत्तर साल से जो नहीं था वह यदि नए दशक में है तो जो सेकुलर राजनीति थी, वह और उसे मानने वाले स्वभाविक तौर पर विद्रोह करेंगे!भगवा बनाम सेकुलर व हरे रंग में टकराव बनेगा, बढ़ेगा तो उससे बनने वाला बिखराव भी कई रूपों में प्रकट होगा।
रत्ती भर संदेह न रखें कि मोदी-शाह का हिंदू अश्वमेघ स्थगित होगा या खत्म होगा। वह सब होगा जिससे राष्ट्र-राज्य की हिंदू पहचान घर-घर पहुंचे और दुनिया उसे माने। बहुत संभव है यह सब भोंडे, छिछले, वोट राजनीति के तात्कालिक स्वार्थो में वैसे ही हो जैसे सेकुलर जमात ने साठ साल मदरसे, वहाबीवाद को फैलवाते हुए अपना रंग पकाया। मोदी-शाह के साढ़े पांच साल जैसे गुजरे हैं और असम की एनआरसी के मेनेजमेंट में जो सूराख दिखे हैं तो आगे की नागरिक संहिता व एनआरसी में हिंदूशाही की वैसी भद्द पीटनी संभव है जैसे बाकी एजेंडो में हुई है। मगर मोदी-शाह-योगी की सत्ता का क्यों आगे सहारा क्योंकि सिर्फ भगवा से है तो अगले दस सालों में हिंदू राष्ट्र का मिशन बढ़ता रहेगा तो विरोधियों, सेकुलरों, आंदोलनकारियों की राजनैतिक-पुलिसिया ठुकाई भी इस अंदाज में होगी कि हमारी सत्ता पक्की!
सोचंे, सत्ता एकतरफा हुई, 2024 और 2029 में भी मोदी-शाह की सत्ता बनी तो भगवा बनाम सेकुलर, हिंदू बनाम मुस्लिम का अखिल भारतीय संर्घष कितनी तरह के, कैसे-कैसे बिखराव लिए होगा? दिल्ली तख्त का एक वह राष्ट्रीय पानीपत तो पूर्वोत्तर भारत, दक्षिण भारत, कश्मीर घाटी की अलग-अलग खदबदाहट में राजनीति कई तरह के टकरावों, चुनौतियों से जूझेगी तो सामाजिक विग्रह और आर्थिक दुर्दशा के लक्षण भी भयावह है। भगवा रंग के नीचे आरक्षण की खदबदाहट की हकीकत अपनी जगह है तो दलित-आदिवासियों की बैचेनी मामूली नहीं है। भगवा आवरण के नीचे हिंदू समाज के विग्रह इसलिए भी घाव बनने है क्योंकि असमानता, वर्ग संघर्ष की दस तरह की स्थितियां बदहाल आर्थिकी व बेरोजगारी जैसे कारणों से विकट होती जानी है और हिदूंशाही के पास इन सबका कोई समाधान नहीं है।
संभव है यह सिनेरियों निराशावादी सोच वाला समझ आए। अपना भी मानना रहा है कि भेड़-बकरियों के बाड़े में विद्रोह, बिखराव नहीं हुआ करता है। सब एक चाल पकड़े होते हैं। वक्त काटने का जब इतिहास है तो एक दशक तो बहुत छोटी अवधि है। हम लोग अव्यवस्था, के होश, बरबादी को भी मजे से जी लेते हंै तो भगवा रंग, पहचान से भला क्या पहाड़ टूट पड़ेगा। दिल्ली अब अधिक ताकतवर है, औरंगजेबी दरबार है तो 2030 कीजनवरी तक हिंदूशाही का परचम भारत को विश्व गुरू करार दे चुका होगा। वाह! वह तबहोगा हम हिंदुओं का अहोभाग्य! इस पोजिटिव सिनेरियों को भी संभाल कर रखिए!
हिंदू पहचान व बिखरने का दशक
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