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लोकसभा में आंदोलन की गूंज

ByNI Desk,
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लोकसभा में आंदोलन की गूंज
नई दिल्ली। राज्यसभा के बाद अब लोकसभा में भी विपक्षी सांसदों ने केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 76 दिन से चल रह किसान आंदोलन का मुद्दा उठाया। विपक्षी पार्टियों के कई सांसदों ने केंद्र सरकार से कहा कि वह कृषि कानूनों को वापस ले। लोकसभा में चर्चा के दौरान विपक्षी पार्टियों ने किसानों का मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को लोकसभा में जवाब देंगे। माना जा रहा है कि राज्यसभा की ही तरह वे लोकसभा में भी कृषि कानूनों के फायदे समझाएंगे। गौरतलब है कि राज्यसभा में उन्होंने किसानों से बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन दो दिन बाद तक सरकार की ओर से वार्ता की कोई पहल नहीं हुई। बहरहाल, मंगलवार को लोकसभा में नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि उसके बनाए कृषि कानून को धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, जिन्हें बदला नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर किसान चाहते हैं तो इन कानूनों में रद्द कर देना चाहिए। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि सरकार किसानों से बात क्यों नहीं कर रही है। उन्होंने सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि उसे कृषि कानूनों के प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्यसभा में दिए प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को निशाना बनाया। उन्होंने कहा- प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में कहा कि एमएसपी था, एमसपी है और एमएसपी रहेगा, लेकिन यह सिर्फ भाषणों में है, जमीन पर नहीं है। उन्होंने केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने देश भर के किसानों को जगा दिया है। इस बीच कांग्रेस पार्टी के सांसद मनीष तिवारी ने बताया है कि पंजाब के कांग्रेस सांसद लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश करेंगे। पंजाब के सांसद केंद्र सरकार के बनाए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए बिल पेश करेंगे। तिवारी ने कहा कि परनीत कौर, जसबीर सिंह गिल और संतोख चौधरी के साथ मिल कर वे तीनों विवादित कानूनों को रद्द करने का बिल पेश करेंगे। उन्होंने कहा कि वे किसानों का समर्थन करने वाली पार्टियों से सहयोग की अपील करेंगे। तिवारी ने यह भी कहा कि वे राज्यसभा में भी अपनी पार्टी के सांसदों से अपील करेंगे कि वे ऐसा बिल उच्च सदन में भी पेश करें। एक और किसान की मौत केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में 76 दिन से चल रहे किसानों के आंदोलन में एक और किसान की मौत हो गई है। मंगलवार को सिंघु बॉर्डर पर 50 साल के एक किसान ने दम तोड़ दिया। किसान की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है। मृतक किसान का नाम हरिंदर था और वे पानीपत जिले के सेवा गांव के रहने वाले थे। इससे पहले सोमवार को पीजीआई रोहतक में भी एक बुजुर्ग किसान की मौत हुई थी। उन्हें 16 जनवरी को ठंड लगने पर टिकरी बॉर्डर से लाकर भर्ती कराया गया था। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। इस दौरान अलग-अलग वजहों से 70 किसानों की मौत हो चुकी है। इनमें से कुछ ने सुसाइड कर ली, तो कुछ की मौत हार्ट अटैक, ठंड लगने या फिर किसी बीमारी से हो गई। दुर्घटना में भी कुछ किसान मारे गए और एक किसान की मौत गणतंत्र दिवस के दिन हुई ट्रैक्टर रैली के दौरान हो गई थी।
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