अमित शाह ने हैदराबाद में ऐसा नैरेटिव क्यों बनवाया? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि ओवैसी ने हाल में बिहार और उससे पहले झारखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी मदद की थी और आगे पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा को बहुत शिद्दत से उनकी मदद की दरकार है? असल में ओवैसी की राजनीति का नतीजा है, जो भाजपा बिहार विधानसभा में 73 सीट जीतने में कामयाब रही और जनता दल यू के साथ मिल कर उसे सरकार बनाने का मौका मिला। ओवैसी की पार्टी पांच सीटों पर जीती, लेकिन उसने कम से कम 15 सीटों पर महागठबंधन के वोट काट कर सीधे राजद और कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाया।
इससे पहले झारखंड के चुनाव में भी हर मुस्लिम बहुल सीट पर ओवैसी ने उम्मीदवार उतारे और हेलीकॉप्टर से प्रचार करके जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान पहुंचाया। यहीं काम उनको पश्चिम बंगाल में करना है। लेकिन उससे पहले उनको हैदराबाद में बढ़ाया बनाया जा रहा है ताकि वे बंगाल में ज्यादा असरदार साबित हो सकें। उनका कद जितना ज्यादा बढ़ेगा, मुस्लिम युवा और कट्टरपंथी उनकी ओर उतना ज्यादा आकर्षित होंगे। इसी सोच में अमित शाह ने ओवैसी के मुकाबले खुद को रख कर मुकाबले को बड़ा बना दिया। इस लड़ाई का भाजपा का जो फायदा हो पर यह तय है कि ओवैसी की पार्टी को बहुत फायदा होगा। हैदराबाद की एकमात्र लोकसभा सीट से आगे बढ़ कर उसका असर दूसरी सीटों पर भी होगा और पहले से ज्यादा पार्षद उसके जीत सकते हैं। फिर वे ज्यादा ताकत से पश्चिम बंगाल में भाजपा की मदद करेंगे।
बिहार का कर्ज हैदराबाद में चुकाया!
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