नई दिल्ली। अपने बयानों से पहले कई बार विवाद पैदा कर चुके सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने अब नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों पर सवाल उठा कर नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे विपक्ष को एक तरह से निशाना बनाते हुए कहा है कि कॉलेज के छात्रों और दूसरे लोगों को हिंसा व आगजनी के लिए उकसाना नेतृत्व नहीं है।
उनके इस बयान पर कांग्रेस, सीपीएम, एमआईएम जैसी पार्टियों ने सवाल उठाए हैं और उनका विरोध किया है। सीपीएम ने उनसे माफी मांगने को कहा है।
इससे पहले सेना प्रमुख ने यहां एक स्वास्थ्य सम्मेलन में गुरुवार को कहा कि नेता जनता के बीच से उभरते हैं, नेता ऐसे नहीं होते जो भीड़ को अनुचित दिशा में ले जाएं। उन्होंने कहा कि नेता वह होते हैं, जो लोगों को सही दिशा में ले जाते हैं। गौरतलब है कि इसी महीने संसद के दोनों सदनों में संशोधित नागरिकता विधेयक को मंजूरी दी गई, जिसके विरोध में देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगह तो इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप भी ले लिया।
इसी पर सवाल उठाते हुए रावत ने कहा- नेतृत्व यदि सिर्फ लोगों की अगुवाई करने के बारे में है, तो फिर इसमें जटिलता क्या है। क्योंकि जब आप आगे बढ़ते हैं, तो सभी आपका अनुसरण करते हैं। यह इतना सरल नहीं है। यह सरल भले ही लगता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। उन्होंने कहा- नेतृत्व वह होता है, जो लोगों को सही दिशा में ले जाए। नेता वे नहीं हैं जो अनुचित दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं। सेना प्रमुख ने कहा कि जिस तरह शहरों और कस्बों में भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया जा रहा है, वह नेतृत्व नहीं है।
क्या पाकिस्तान के रास्ते जा रहे?
नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर दिए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान की विपक्षी पार्टियों ने आलोचना की है। उनके बयान की निंदा करते हुए सीपीएम ने कहा कि जनरल रावत ने अपनी वैधानिक सीमा से बाहर जाकर ऐसा बयान दिया है। सीपीएम पोलित ब्यूरो ने कहा है- जनरल रावत के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार की स्थिति में कितनी गिरावट आ गई है, जो बताती है कि सेना के शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति अपनी संस्थागत भूमिका की सीमाओं को किस प्रकार से लांघता है। पार्टी ने आगे कहा है- ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हम सेना का राजनीतिकरण कर पाकिस्तान के रास्ते पर नहीं जा रहे हैं? पोलित ब्यूरो ने कहा है कि सेना प्रमुख को अपने बयान के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
उधर हैदराबाद से सांसद और एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सेना को असैन्य मुद्दों में दखल नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उस मानदंड के हिसाब से आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी छात्र के तौर हिस्सा लेना गलत था। ओवैसी ने कहा कि संविधान के मुताबिक, सेना को असैन्य मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। विरोध का हक मौलिक अधिकार है।
कांग्रेस ने भी सेना प्रमुख के बयान पर आपत्ति जताई है। कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने उनके बयान का हवाला देते हुए ट्विट किया- मैं जनरल साहब से सहमत हूं, लेकिन लीडर्स वे भी नहीं होते हैं जो अपने समर्थकों को सांप्रदायिक हिंसा के नरसंहार में शामिल करते हैं। क्या आप मुझसे सहमत हैं जनरल साहब?
सेना प्रमुख कूदे राजनीति में!
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