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दंगे और राजनीतिक प्रलाप

ByNI Desk,
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दंगे और राजनीतिक प्रलाप
लोग टीवी पर समाचार चैनल देख रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि यह देश एक राजनीतिक मंच है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के समाचार चल रहे हैं। तीन दिन आने वाले समय का ट्रेलर चला। बीच में कुछ शांति है और उच्च स्तरीय प्रलाप हैं। जो मारते हैं और मारे जाते हैं, वे साधारण लोग होते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने के बाद मीडिया में प्रलाप करने वाले लोग उच्च स्तरीय होते हैं। सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्वीट आया। उन्होंने दिल्ली के लोगों से शांति और सद्भावना की अपील की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजघाट पहुंचकर दुखी होने का नाटक किया। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के साथ बैठक करने की औपचारिकता निभाई। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर ने भी हिंसा की निंदा करने का धर्म निभाया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी मीडिया के सामने आने का मौका मिला और उन्होंने संवाददाताओं को बुलाकर गृह मंत्री अमित शाह से इस्तीफा मांगा। उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में दिल्ली सरकार को भी लपेटा। मीडिया वालों को प्रियंका गांधी वाड्रा का बयान भी मिला। उनका कहने का मतलब यह था कि कांग्रेस होती तो यह नहीं होता। जैसे कांग्रेस के राज में कभी दंगे हुए ही नहीं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिमला में विधानसभा के बजट सत्र में कहा- ‘भारत में भारत माता की जय करने वाला रहेगा, जो भारत का विरोध करेगा, संवैधानिक व्यवस्थाओं का सम्मान नहीं करेगा, निरादर करेगा, बार बार करेगा, उनके बारे में निश्चित रूप से विचार किए जाने की आवश्यकता है।‘... कहने का मतलब यह कि जहां दंगे हुए, वहां कोई नहीं जा रहा है। मोदी, शाह, प्रसाद, जावडेकर, केजरीवाल, सोनिया, प्रियंका आदि सभी बड़े नेता दिल्ली में ही रहते हैं। अगर ये इतने ही दुखी हैं तो सबको उत्तर पूर्वी दिल्ली तक पहुंचने और लौटने में कितना समय लगता है? क्या घायल लोगों के जख्मों पर खुद मलहम लगाने पहुंचने से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो जाएगा? दंगे अपनी जगह है, राजनीति अपनी जगह है। जनता माहौल से निराश है।
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