नई दिल्ली। संशोधित नागरिकता कानून, सीएए के विरोध में शाहीन बाग में चल रहे धरने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि इस तरह से प्रदर्शन की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। अदालत ने धरने पर बैठी एक महिला के चार महीने के बच्चे की मौत पर खुद से संज्ञान लिया है और सुनवाई की है। अदालत ने पूछा है कि क्या चार महीने के बच्चे को धरने में शामिल करने की इजाजत दी जा सकती है? अदालत ने इस मामले में केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया पर कोई आदेश नहीं जारी किया।
गौरतलब है कि शाहीन बाग में करीब दो महीनों से सीएए के विरोध में प्रदर्शन हो रहा है। लगातार चल रहे धरने की वजह से यातायात बाधित हो रहा है। धरने की वजह से सड़कें बंद होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सोमवार को इस पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा- आप रास्ता नहीं रोक सकते। एक सार्वजनिक क्षेत्र में प्रदर्शन जारी नहीं रखा जा सकता है। हर कोई ऐसे प्रदर्शन करने लगे तो क्या होगा?
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसफ की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा- यह धरना प्रदर्शन कई दिनों से चल रहा है। एक कॉमन क्षेत्र में यह जारी नहीं रखा जा सकता, वरना सब लोग हर जगह धरना देने लगेंगे। क्या आप पब्लिक एरिया को इस तरह बंद कर सकते हैं? क्या आप पब्लिक रोड को ब्लॉक कर सकते हैं? प्रदर्शन बहुत लंबे अरसे से चल रहा है और प्रदर्शन को लेकर एक जगह सुनिश्चित होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अंतरिम आदेश जारी करने की मांग की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा- वे लोग 58 दिनों से धरने पर हैं। आप एक हफ्ते और इंतजार कर सकते हैं।
बच्चे की मौत पर पूछा सवाल
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने 30 जनवरी को शाहीन बाग प्रदर्शन में चार महीने के बच्चे की मौत पर खुद संज्ञान लिया है। बहादुरी पुरस्कार प्राप्त छात्रा जेन गुणरत्न सदावर्ते ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिख कर बच्चों को प्रदर्शनों में शामिल करने के मामले में दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी। इस पर सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी।
इस बीच दो महिला वकीलों ने अदालत के खुद संज्ञान लेने पर आपत्ति जताई। वकीलों ने कहा- प्रदर्शन की जगह पर जाने वाले बच्चों को स्कूलों में पाकिस्तानी और देशद्रोही कहा जाता है। इस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने महिला वकील को फटकार लगाते हुए पूछा- क्या चार महीने का बच्चा ऐसे प्रदर्शनों में हिस्सा ले सकता है। अदालत ने कहा- हम नहीं चाहते कि लोग अदालत का इस्तेमाल परेशानियां बढ़ाने के लिए करें। हम यहां सीएए या एनआरसी और स्कूलों में बच्चों को पाकिस्तानी कहे जाने पर सुनवाई के लिए नहीं आए हैं। किसी की आवाज भी नहीं दबा रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- बच्चों को प्रदर्शन की जगह पर लेकर जाना सही नहीं है।
शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
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