नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग अलग हिस्से में फंसे मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए सरकारों को 15 दिन का समय दिया है। सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को इस मसले पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि वह उन्हें 15 दिन का समय देना चाहती हैं, ताकि वे देश भर में फंसे सभी मजदूरों को उनके घर पहुंचा सकें। साथ ही अदालत ने राज्यों से यह भी कहा कि जो मजदूर वापस अपने गृह राज्य पहुंच रहे हैं, उनके लिए आवश्यक तौर पर रोजगार का इंतजाम किया जाए।
इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने नौ जून को आदेश जारी करने की बात कही है। इससे पहले 28 मई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि मजदूरों से ट्रेन का किराया नहीं लिया जाएगा। साथ ही अदालत ने कहा था कि जिस राज्य से ट्रेन शुरू होगी उस राज्य की जिम्मेदारी होगी कि वह मजदूरों के खाने-पीने का इंतजाम करे और ट्रेन में उनके खाने-पीने की व्यवस्था करने का जिम्मा रेलवे को दिया गया था।
बहरहाल, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए तीन जून तक 42 सौ श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं। करीब एक करोड़ लोगों को उनके मूल निवास स्थान तक पहुंचाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्यों ने भी अपने किए गए कामों की जानकारी दी। उत्तर प्रदेश की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट पी नरसिम्हा ने बताया कि राज्य में मजदूरों से कहीं भी किराया नहीं लिया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि 1,664 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें की व्यवस्था प्रवासी मजदूरों को राज्य में लाने के लिए की गई है और 21.69 लाख लोगों को अब तक वापस लाया गया है।
बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने बताया कि 28 लाख लोग बिहार लौटे हैं। इन सभी लोगों को रोजगार मुहैया कराए जाने के लिए बिहार सरकार सभी जरूरी कदम उठा रही है। दिल्ली सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल संजय जैन ने बताया कि लाख मजदूर अभी भी दिल्ली में हैं। ये लोग वापस नहीं जाना चाहते हैं।
निजी अस्पतालों के बिल पर जवाब तलब
कोरोना वायरस के इलाज में होने वाले खर्च को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को निजी अस्पतालों से जानकारी मांगी। सर्वोच्च अदालत ने निजी अस्पतालों से जानना चाहा कि क्या वे सरकार की आयुष्मान भारत योजना के तहत तय किए गए खर्च पर कोविड-19 से संक्रमित मरीजों का इलाज करने के लिए तैयार हैं?
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के दौरान कहा कि सर्वोच्च अदालत सभी निजी अस्पतालों से कोविड-19 के कुछ मरीजों का मुफ्त इलाज करने के लिए नहीं कह रही है। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ उन निजी अस्पतालों से एक निश्चित संख्या में कोविड-19 से संक्रमित मरीजों का मुफ्त इलाज करने के लिए कह रही है, जिन्हें सरकार ने रियायती कीमत पर जमीन आवंटित की है।
चीफ जस्टिस ने कहा- मैं तो सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि क्या अस्पताल आयुष्मान भारत योजना की दर से इलाज का शुल्क लेने के लिए तैयार हैं? केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार समाज के सबसे निचले तबके और आयुष्मान भारत योजना के दायरे में आने वाले व्यक्तियों के लिए सबसे बेहतर काम कर रही है। अदालत ने इस मामले को अब दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
मजदूर 15 दिन में घर पहुंचे
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