श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में कड़ाके की ठंड़ और भारी सुरक्षा बंदोबस्तों के बीच डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट कौंसिल, डीडीसी के चुनावों की शुरुआत हो गई। आठ चरण में होने वाले चुनाव के पहले चरण में शनिवार को लोगों में अच्छा खासा उत्साह देखने को मिला और करीब 52 फीसदी लोगों ने मतदान किया। भारी ठंड़, सुरक्षा की चिंता और कोरोना वायरस के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोगों का मतदान के लिए निकलना बड़ी बात है।
इस चुनाव के साथ ही जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की एक नई शुरुआत हुई है। राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने और इसका बंटवारा करके केंद्र शासित राज्य बनाए जाने के बाद यहां पहली बार मतदान हुआ। डीडीसी के चुनावों के पहले चरण में 43 सीटों के लिए 51.79 फीसदी वोटिंग हुई। कोरोना, आतंकवाद और ठंड की चुनौतियों के बीच यह चुनाव जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए कई मायनों में अहम है।
इसकी खास बात यह रही कि डीडीसी, पंच और सरपंचों के चुनावों में पहली बार पश्चिमी पाकिस्तान के रिफ्यूजी को भी वोट करने का अधिकार दिया गया। सात दशक में पहली बार ऐसा है कि जब इन शरणार्थियों ने राज्य में पंचायत स्तरीय चुनाव में वोटिंग की। खबरों के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के 22 हजार से अधिक परिवार हैं। आबादी के लिहाज से इनकी संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है। इनमें एक लाख लोगों को वोटिंग का अधिकार है।
अनुच्छेद 370 लागू रहने तक ये शरणार्थी सिर्फ लोकसभा चुनाव में ही वोट कर पाते थे। इन्हें विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनाव और पंचायती चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं था। बहरहाल, डीडीसी के चुनाव आठ चरण में होने हैं। पहले चरण शनिवार को हुआ और आखिरी चरण 19 दिसंबर को पूरा होगा।
जम्मू कश्मीर के इतिहास में यह पहली बार है, जब राज्य की छह प्रमुख पार्टियां एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद इन पार्टियों ने मिलकर गुपकर एलायंस बनाया है। इनमें डॉ. फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता वाली नेशनल कांफ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की अगुआई वाली पीडीपी के अलावा सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस, अवामी नेशनल कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और सीपीएम की स्थानीय इकाई शामिल है। इनके सामने भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में हैं।