नई दिल्ली। झारखंड में 'घर-घर मोदी' की तर्ज पर गढ़ा गया 'घर-घर रघुवर' का नारा नहीं चला। प्रदेश में रघुवर सरकार के प्रति लोगों के असंतोष को शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं भांप पाए क्योंकि इस असंतोष के आगे मोदी मैजिक भी बेअसर चला गया।
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले प्रदेश (2000 में झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद) के पहले मुख्यमंत्री हैं, लेकिन सोमवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा की हार उनकी सरकार की विफलता बताती है।
विकास के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने वाली भाजपा को प्रदेश के मतदाताओं ने नकार दिया है। आर्थिक विषयों के जानकार बताते हैं कि दास का विकास सिर्फ जुमले में सुनाई देता था और विज्ञापनों में दिखता था, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान ही नहीं दिया।
वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि झारखंड में भाजपा की हार अहंकार की प्रवृत्ति का नतीजा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में धमाकेदार जीत हासिल करने के बाद पहले महाराष्ट्र और अब झारखंड में सत्ता से बेदखल हो गई है। हरियाणा में भी मुश्किल से क्षेत्रीय दल के सहयोग से पार्टी सत्ता में आई है।
झारखंड में नहीं चला 'घर-घर रघुवर' का नारा
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