कोई काम शुरू करें, उसमें बाधा न आए, इसके लिए सभी मानव शक्तियों का अधिपति रूप है गणपति।
बुद्धी तेज, बाधाओं-दुखों से पार करा इच्छा-कामना पूरा कर खुशी, आनन्द- मंगल बढाने का आर्शीवाद देने वाले लोक देवता है।
विनायक वक्रतुण्ड, एकदन्त, लम्बोदर और विघ्नविनाशक आदि नाम भी गणेश के है। आज पञ्चदेवों – विष्णु , शिव, दुर्गा, सूर्य और गणेश में एक है बल्कि सबसे पहले, आदिपूज्य है।
ऋग्वेद द्वितीय मंडल के तेईसवें सूत्र के पहले मन्त्र व तैतिरीय संहिता 2/3/14/3 में अंकित मन्त्र- गणानांत्वा गणपतिं हवामहे... तिभिः सीद सादनम्।..... का जिक्र विद्वान गणेश उल्लेख में मानते हैं।
इस मूल प्रार्थना मंत्र काअर्थ है- तुम देवताओं में दिव्य और कवियों में श्रेष्ठ हो। तुम प्रशंसा किये हुए में सर्वश्रेष्ठ व स्तोत्रों के स्वामी हो।.. हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। हे, बुद्धिमानों के पालक।
बोधायन गृहसूत्र 3/3/10 में गणेश को विघ्न विनाशक के रूप में नमस्कार है। इस मन्त्र में विनायक उतरकालीन गणेश का आदिरूप है।
उतरवैदिक कालीन साहित्य में विनायक का इस प्रकार सहसा उल्लेख एवं अपर काल में शिव के साथ उसका घनिष्ठ सम्बन्ध हो जाना भारतीय धार्मिक इतिहास में एक आश्चर्यजनक घटना है।
पद्म, लिंग, ब्रह्म वैवर्त, स्कन्द, शिव, वराह पुराण किताबों में भगवान गणेश के स्वरुप, जन्म, गणेश तत्व, महिमा, उनके अवतार व उनकी माधुरी लीला, व्रत -पूजा, गणेश मन्त्र के महत्व का खुलासा है।
आधुनिक काल में हिंदुओं को एकजुट करने व लोगों में आजादी की चेतना बनवाने के लिए लोकमान्य तिलक ने पुणे में सन् 1893 में सार्वजनिक रूप से दस दिनों के गणेशोत्सव की शुरुआत की।
गणेशोत्सव का पौधरोपण अब विराट वट वृक्ष है। मूर्ति विसर्जन की पंरपरा बनी। महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल।